Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 34
________________ श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगम ग्रन्थ १] ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स बहुमज्झदेसभाए माणुसुत्तरे णाम पन्वए पण्णत्ते, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए जे णं पुक्खरवरं दीवं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्टइ, तं जहा-१.अभितरपुक्खरदं च, २. बाहिरपुक्खरद्धं च । (सूर्यप्रज्ञप्ति, पृष्ठ १८७) माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरसएक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेण पण्णत्ते। ( समवायांगसूत्र, १७/३) ३] माणुसुत्तरे णं पवते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते। (स्थानांगसूत्र, १०/४० ) [४] माणुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिं चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा-रयणे, रतणुच्चए, सव्वरयणे, रतणसंचए।। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३०३ ) [५] :: गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विखंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि अंजणगपव्वता पण्णत्ता। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३३८) [६] (i) ते णं अंजणगपव्वता चउरासोति जायणसहस्साई उड्ट उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं ।। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३३८) (i) सव्वेसि णं अंजणगपव्वया चउरासोइं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। (समवायांगसूत्र, ८४/८) [७ तदणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणा-परिहायमाणा उरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पण्णत्ता। मूले इक्कतोसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, उरिं तिण्णि-तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठ जोयणसतं परिक्खेवेणं। (स्थानांगसूत्र, ४/२/३३८ ) 44] तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्शदेसभागे चत्तारि सिद्धायतणा पण्णत्ता । ( स्थानांगसूत्र, ४/२/३३९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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