Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 35
________________ दोवसागरपणत्तिपइन्णय [९] जोयणसयमायामा १००, पन्नासं ५० जोयणाई वित्थिन्ना। पनत्तरि ७५ मुव्विद्धा अंजणगतले जिणाययणा ।। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४०) [१०] अंजणगपव्वयाण उ सयस्सहस्सं १००००० भवे अबाहाए । पुव्वाइआणुपुवी पोक्खरणीओ उ चत्तारि ॥ पुग्वेण होइ नंदा १ नंदवई दक्खिणे दिसाभाए २। अवरेण य णंदुत्तर ३ नंदिसेणा उ उत्तरओ ४ ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४१-४२) [११] एगं च सयसहस्सं १००००० वित्थिण्णाओ सहस्समोविदा १०००। निम्मच्छ-कच्छभाओ जलभरियाओ अ सव्वाओ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४३) [१२] पुक्सरणीण चउदिसि पंचसए ५०० जोयणाणऽवाहाए । पुव्वाइआणुपुव्वी चउद्दिसि होंति वणसंडा॥ पागारपरिक्खित्ता सोहंते ते वणा अहियरम्मा। पंचसए ५०० वित्यिन्ना, सयस्सहस्सं १००००० च आयामा॥ पुव्वेण असोगवण, दक्खिणओ होइ सत्तिवनवणं । अवरेण चंपयवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४.४६) [१३] रयणमुहा उ दहिमुहा पुक्खरणीणं हवंति मज्झम्मि । दस चेव सहस्सा १०००० वित्थरेण, चउसट्ठि ६४ मुग्विदा ॥ एकत्तीस सहस्सा छच्चेव सया हवंति तेवीसा ३१६२३ । दहिमुहनगपरिखेवो किंचिविसेसेण परिहीणो॥ संखदल-विमलनिम्मलदहिघण-गोखीर-हारसंकासा । गगणतलमणुलिहिता सोहंते दहिमुहा रम्मा । (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ४८-५०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142