Book Title: Divsagar Pannatti Painnayam Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 37
________________ दोषसागरपणत्तिपाइपयं [१४] जो दक्खिणअंजणगो तस्सेव चउद्दिसिं च बोडव्वा । पुक्खरिणी चत्तारि वि इमेहिं नामेहि विनेया॥ पुव्वेण होइ भद्दा १, होइ सुभद्दा उ दक्खिणे पासे २। अवरेण होइ कुमुया ३, उत्तरओ पुंडरिगिणी उ ४ ।। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ५२-५३) [१५] अवरेण अंजणो जो उ होइ तस्सेव चउदिसि होति । पुक्खरिणीओ, नामेहिं इमेहिं चत्तारि विनेया ।। पुब्वेण होइ विजया १, दक्खिणओ होइ वेजयंती उ२। अवरेणं तु जयंती ३, अवराइय उत्तरे पासे ४॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ५४-५५) [१६] जो उत्तरअंजणगो तस्सेव चउद्दिसिं च बोद्धव्वा । पुक्खरिणीओ चत्तारि, इमेहिं नामेहिं विनेया ॥ पुग्वेण नंदिसेणा १, आमोहा पुण दक्खिणे दिसाभाए २।, अवरेणं गोत्थूभा ३ सुदंसणा होइ उत्तरओ ४॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ५६-५७) [१७] एकासि एगनउया पंचाणउइं भवे सहस्साई ८१९१९५००० । नंदीसरवरदीवे ओगाहिताण रइकरगा। उच्चत्तेण सहस्सं १०००, अड्ढाइज्जे सए य उम्विदा २५० । दस चेव सहस्साई १०००० वित्थिण्णा होति रइकरगा। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ५८-५९) [१८] एक्कत्तीस सहस्सा छ च्चेव सए हवंति तेवीसे ३१६२३ । रइकरगपरिक्खेवो किंचिविसेसेण परिहीणो। (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ६०) [१९] जो पुव्वदक्खिणे रइकरगो तस्स उ चउद्दिर्सि होति । सक्कऽग्गमहिस्सीणं एया खलु रायहाणीओ ॥ देवकूर १, उत्तरकुरा २, एया पुग्वेण दक्खिणेणं च । अवरेण उत्तरेण य नंदुत्तर ३ नंदिसेणा ४ य ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा ६२-६३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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