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दोवसागरपण्णत्तिपइण्णयं
और एक सौ चौवालीस सूर्यों की पंक्तियाँ हैं। इसके आगे के द्वीप-समुद्रों में चन्द्र-सूर्यों की पंक्तियों में चार गुणा वृद्धि होती है। ग्रन्थ का समापन यह कहकर किया गया है कि जो द्वीप और समुद्र जितने लाख योजन विस्तार वाला होता है वहाँ उतनी ही चन्द्र और सूर्यों की पंक्तियाँ होती हैं ( २२४-२२५ )।
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