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दोवसागरपण्णत्तिपइण्णयं
कुण्डल द्वीप का विस्तार दो हजार छः सौ इक्कीस करोड़ चौवालोस लाख योजन बतलाया गया है । ग्रन्थ में कुण्डल द्वीप के मध्य में स्थित प्राकार के समान आकार वाले कुण्डल पर्वत की ऊँचाई, जमीन में गहराई तथा अधोभाग, मध्य भाग और शिखर-तल के विस्तार का भी विवेचन किया गया है (७१-७५ ) ।
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कुण्डल पर्वत के ऊपर पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में चार-चार - इस प्रकार कुल सोलह शिखर कहे गये हैं। साथ ही इन शिखरों के अधोभाग, मध्यभाग, और शिखर तल की परिधि और विस्तार का परिमाण भो बतलाया गया है ( ७६-८३ ) । इन शिखरों पर पल्योपम काय-स्थिति वाले सोलह नागकुमार देव कहे गए हैं ( ८४-८६ ) ।
कुण्डल पर्वत के भीतर उत्तर दिशा में ईशान लोकपालों को तथा दक्षिण दिशा में शक्र लोकपालों की सोलह-सोलह राजधानियाँ कहो गई हैं । कुण्डल पर्वत के मध्य भाग में रतिकर पर्वत के समान परिमाण वाला श्रमण पर्वत स्थित माना है । उस पर्वत को चारों दिशाओं में जम्बूद्वीप के समान लम्बाई-चौड़ाई वाली चार राजधानियाँ हैं । इसी प्रकार वरुणप्रभ पर्वत, सोमप्रभ पर्वत तथा यमवृत्तिप्रभ पर्वत की चारों दिशाओं में भी चार-चार राजधानियाँ मानी गई हैं ( ८७-९७ ) ।
कुण्डल पर्वत की भीतरी राजधानियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि दक्षिण दिशा में शक्र देवराज की आठ अग्रमहिषियां और उनके नाम वाली आठ राजधानियाँ हैं तथा उत्तर दिशा में ईशान देवराज की आठ अग्रमहिषियां और उन्हीं के नाम वाली आठ राजधानियाँ हैं ( ९८- १०१ ) ।
कुण्डल पर्वत के बाहर तैंतीस रमणीय रतिकर पर्वत माने गये हैं । इन पर्वतों को शक्र देवराज के जो तैंतीस देव हैं, उनके उत्पाद पर्वत बताया गया है । आगे की गाथाओं में शक्र देवराज और ईशान देवराज hi अग्रमहिषियों के नाम वाली आठ-आठ राजधानियों का उल्लेख हुआ है ( १०२-१०९ ) ।
ग्रन्थ में कुण्डल समुद्र और रुचक द्वीप के विस्तार परिमाण की संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् रुचक द्वीप के मध्य में स्थित रुचक पर्वत को ऊंचाई, जमीन में गहराई, अधोभाग, मध्यभाग तथा शिखर-तल का उसका विस्तार परिमाण आदि बतलाया गया है ( ११०-११६ ) ।
रुचक पर्वत के शिखर तल पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-वारों
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