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बारह
प्रारम्भ किया और चार सर्गों तक उसका पुनरावलोकन कर दिया। फिर अन्यान्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण मैं इस कार्य को कर न सका। इस वर्ष जब अन्यान्य कार्य सम्पन्न हुए तब लाडनूं चातुर्मास में यह कार्य चालू हुआ । अनुवाद में यत्र-तत्र परिवर्तन-परिवर्धन किया।
इस महाकाव्य के १८ सर्ग हैं और लगभग २६०० श्लोक हैं। हमने इसको दो भागों में विभक्त किया है। प्रथम भाग में प्रथम दस सर्ग तथा द्वितीय भाग में शेष आठ सर्ग समाहित होंगे। प्रथम भाग में कोई परिशिष्ट नहीं रहेगा। जो परिशिष्ट देने हैं वे सारे द्वितीय भाग में देने का निर्णय किया है।
महाकाव्य के १८ सर्गों का श्लोक-परिमाण तथा छंद-विवरण इस प्रकार हैसर्ग-संख्या श्लोक-परिमाण
छन्द १२५
वसन्ततिलका १४६
उपजाति १२६
उपेन्द्रवज्रा १२६
इन्द्रवज्रा वसन्ततिलका तोटक पज्झटिका
वंशस्थ १९८
मन्दाक्रान्ता शार्दूलविक्रीडित
उपजाति ५२
भुजंगप्रयात १०८
द्रुतविलंबित
शिखरिणी २१५
शार्दूलविक्रीडित ४५९
अनुष्टुभ् २०९
उपजाति दोधक
१६३
mr.
१४.
१६.
१८.