Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ रयणत्तयसिद्धीएणतचउ? यसरुवगो भविदुं । जुम्गो जीवो भब्बो तबिवरीओ अभब्बो दु॥14॥ रत्नत्रयसिद्धयाऽनन्तचतुष्ट यस्वरूपको भवितुं । योग्यो जीवों मब्यः तद्विपरीतोऽभव्यस्तु ॥ अन्वयार्थ 14- (रयणत्तय सिद्धीए) रत्नत्रय की सिद्धि से (अणतचउट्ठ यसरूवगो)अनन्त चतुष्टय स्वरूप(भविर्दु जुम्गो) होने के योग्य (भल्वो) भव्य है (तविवरीओ) इसके विपरीत (जीवो) जीव (अमव्वो दु) अभव्य है। भावार्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यञ्चारित्ररूपरत्नत्रय की सिद्धि और अनन्त दर्शन, ज्ञान सुख तथा अनन्ततीर्य का अनन्त चतुष्टय को प्राप्त करने की क्षमता वालाजीव भव्य है। जो सम्यग्दर्शन आदि गुणों की प्रगट करने की योग्यता से रहित है वह अभव्य है। जीवाणं मिच्छु दया अणउदयादो अतच्चसद्भाणं । हवदि हुतं मिच्छत्तै अर्णतसंसारकारणं जाणे || 15॥ जीवानां मिथ्यात्वोदयावनोदयतोऽत्त्वश्रद्धानं । भवति हि तन्मिथ्यात्वं अनंतसंसारकारणं जानीहि ॥ अन्वयार्थ - (जीवाण) जीवों के (मिच्छु दया) मिथ्यात्व के उदय से और (अणउवयादो) अनन्तानुबंधी के उदय से जो (अतच्चसद्धाण) अतत्त्व श्रद्धान (हवदि) होता है (तं) उस (मिच्छत्त) मिथ्यात्व कहते हैं। (हु) निश्चय से (अणंतसंसारकारण) उसको अनन्त संसार का कारण (जाणे) जानो। अपचक्खाणुदयादो असंजमो पढमचऊगुणट्ठाणे । पच्चक्खाणुदयादो देसजमो होदि देसगुणे | 16 ।। अपत्याख्यानोदयात् असंयमः प्रथमचतुर्गुणस्थाने । प्रत्याख्यानोदयाद्देशयमो भवति देशगुणे ॥ अन्वयार्थ - (पढ़ मचऊगुणट्ठाणे) प्रथम चार गुणस्थानों में (अपचक्खाणुदयादो) अप्रत्याख्यान के उदय से (असंजमो) असंयम होता है एवं (देसगुणे) देशविरत गुणस्थान में (पच्चखाणुदयादो) 18)

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151