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विशेष - गाथा में प्रथम चरण 'चदुतिगदुगछत्तीसं तिसु' इसमें तिग के स्थान पर दुग और दुग के स्थान तिग पाठ कर दिया है - कर्मकाण्ड ग्रन्थ के आधार पर। उणइगिवीसं वीस सत्तरसं तिसु य होति वावीसं | पणपण अठ्ठावीसं इगदुगतिगणवयतीसतालसमभावा ।143॥ एकान्नैकविंशतिः विंशतिः सप्तदश त्रिषु च भवन्ति द्वा विंशतिः । पंचपंचाष्टाविंशतिः एकद्विकत्रिकनवकत्रिंशच्चत्वारिंशद्भावाः ॥
अन्वयार्थ - मिथ्यात्वादि चार गुणस्थानों में क्रमशः (उणइगिवीसं) उन्नीस भाव इक्कीस भाव (वीस) वीस भाव (सत्तरसं) सत्तरह भाव (तिसु) तथा तीन गुणस्थानों में अर्थात् ५३, ६वें और ७वें गुणस्थान में (वाबीस) वाईस वाईस , (पणपणअठ्ठावीस) पच्चीस भाव, पच्चीस, अट्ठाईस (इग दुगतिगनणवयतीस) इकतीस , उनतालीस और (तालसमभावा) चालीस भाव क्रमशः अभाव रूप होते हैं।
भावार्थ - प्रथम गुणस्थान में उन्नीस भावों का अभाव, दूसरे गुणस्थान में इकतीस नीसरे में बीस नौशे में सपना, पाँचवें, छलने सातवें में बाईसबाईस, आठवें गुणस्थान में एवं नवमें गुणस्थान के सवेदभाग में पच्चीस. पच्चम, नवमें गुणस्थान के अवेदभाग में अट्ठाईस, दसवें में इकतीस, म्यारहवें में बत्तीस, बारहवें में तेतीस, तेरहवें में उनतालीस और चौदहवें गुणस्थान में चालीस भाव अभावरूप होते हैं।
गुणस्थानत्रिभङ्गीसमासा
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