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शुभ लेश्यायें (म्रणपज्जुवसमसरागदेसजमं) मनः पर्ययज्ञान, औपशमिक चारित्र, सरागचारित्र, देश चारित्र (खाइयभावा) क्षायिक भाव (णो) नहीं (सति) होते हैं।
भावार्थ -कृष्ण, नील, कापोत इन तीन अशुभ लेश्याओं में तीन शुभ लेश्यायें मनःपर्ययज्ञान, उपशम चारित्र, देश चारित्र सरागचारित्र नहीं होते हैं । क्षायिक सम्यक्त्व के सिवाय 8, क्षायिक भाव नहीं होते हैं। इस प्रकार 15 भावों के न होने से 38 भाव होते हैं एवं गुणस्थान चार होते हैं।
तीन अशुभलेश्याओं में क्षायिक सम्यक्त्वका सद्भाव कर्मभूमिज मनुष्य के चतुर्थ गुणस्थान में, बद्धायुष्क मनुष्य जो भोगभूमि में मनुष्य अथवा तिथंच होने वाला हो उसके अपर्याप्तक अवस्था में जघन्य कापोत लेश्या के साथ तथा प्रथम नरक के क्षायिक सम्यग्दृष्टि नारकी के भी जघन्य कापोतलेश्याजानना चाहिए। इस प्रकार उपर्युक्त तीन अवस्थाओं में अशुभ लेश्याओं के साथ क्षायिक सम्यक्त्व संभव है।
संदृष्टि नं. 74 __ कृष्णादि तीन अशुभ लेश्यायें भाव (38) कृष्णादि तीन लेश्याओं में 38 भाव होते है जो इस प्रकार है-सम्यक्त्व 3, कुशान 3, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षयो.लब्धि 5, गति , कषाय , लिंग 3, कृष्णावि 3 में विवक्षित लेश्या, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, प्रसिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान आदि के चार होते हैं संदृष्टि इस प्रकार है - नोट - भवनत्रिक देव में अपर्याप्त अवस्था में ही कृष्णादि 3 लेश्या होती है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव । अभाव मिथ्यात्व | 2 (मिथ्यात्व |31 (कुज्ञान 3, दर्शन 2,7(सम्यक्त्व 3, ज्ञान 3, अमव्यत्व) | खायो, लब्धि 5, गति अवधिदर्शन)
+, कषाय +, लिंग, लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक माव )
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