Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 132
________________ भाव अभाव गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति | क्षीण 31 " ) | 20 ( " ) 21 (औपशमिक भाव 2, संयमासंयम, सराग संयम, कृष्णयादि लेश्या 5, असंयम, कषाय, नरकादि गति, लिंग 3) विशेष - पूर्व में आचार्य महाराज ने 3 गुणस्थान से अवधिदर्शन स्वीकार किया है। किन्तु यहाँ चतुर्थगुणस्थान से माना है यह विषय विचारणीय है। संदृष्टि नं. 73 केवल दर्शन भाव (14) केवलदर्शन में 14 भाव होते हैं जो इस प्रकार है - क्षायिक भाव 9, मनुष्यगति, शुक्न लेश्या, असिखत्य, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान अंत के दो होते हैं। गुणस्थान भाव न्युच्छित्ति भाव । अभाव 14 (उपर्युक्त ) 0 सयोग | (शुक्ल केवली | लेश्या) अयोग [ (क्षायिक I13 (उपर्युक 14- | 1(शुक्ल लेश्या) केवली दानादिक 4 | | शुक्ल लेश्या) लब्धि , सायिक चारित्र, मनुष्य गति, असिद्धत्व भव्यत्य) किण्हतिये सुहलेस्सति मणपज्जुवसमसरागदेसजम । खाइयसम्मत्तूणा खाइयभावा य णो संति ॥10॥ कृष्णत्रिके शुभलेश्यात्रिकमनःपर्ययशमसरागदेशयमाः । क्षायिकसम्यक्त्वोनाः क्षायिकभावाश्च नो सन्ति ॥ अन्वयार्थ - (किण्हतियं) कृष्णादिक तीन लेश्याओं में (खाझ्यसम्मत्तूणा) क्षायिक सम्यकत्व को छोड़कर(सुहलेस्सति) तीन (125)

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