Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 130
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित 2 मि. ( गुणस्थानवत् संदृष्टि 1) वे. संदृष्टि 1) 3( सा. मिश्र अवि. देश. प्र. अप्र. FOR उप. श्री. 61 2 ( 0 ३ ( अपू. अनि. स. अनि अ. ३ ( सू. 21 0 3( 2 { 13 ( ") 32 ( 37 17 "8 19 13 SP 7" > " भाव 34 ( गुणस्थानवत् दे. } 201 " 36 ( > 31( 310 > 31( 28 > 28 { ) 25 ( > 22 ( > 21 ( ) 20 ( " :1 11 " 17 33 19 11 "P 15 " "P } } > } > } ' ' } } ) अभाव 12 अभाव भावों का कथन गुणस्थान में कहे गये अभाव भावों के समान ही है किन्तु विशेषता यह है कि 13 चक्षु अचक्षु दर्शन में क्षायिक 5 लब्धि, 14 10 केवल ज्ञान तथा केवल दर्शन इन सात भावों का सद्भाव नहीं होता है अतः प्रत्येक 15 15 गुणस्थान ये सात भाव अभाव में कम 15 रहते हैं । अर्थात् प्रथम गुणस्थान में 19 भाव अभाव रूप कहे है उन में से उपरोक्त १ कम 18 करने पर 12 भाव बन जातेहैं । इसी प्रकार की प्रक्रिया शेष It 21 24 गुणस्थानों में जानना चाहिये । अभाव के 25 नाम संदृष्टि 1 से जानना चाहिए। 26 संदृष्टि नं. 72 अवधि दर्शन भाव ( 41 ) अवधिदर्शन में 41 भाव होते हैं। जो इस प्रकार हैं औपशमिक भाव 2, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, ज्ञान 4, दर्शन 3, क्षायो लब्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, संयमासंयम, सराम संथम, अति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व । गुणस्थान अविरत आदि नव होते हैं । (123)

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