Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 129
________________ चक्खुजुगे आलोए खाइयसम्मत्तचरणहीणा दु । सेसाखाइयभावाणोसंतिहु ओहिदसणे एवं ||103।। चक्षुर्युगे आलोके क्षायिक सम्यक्त्वहीनास्तु । शेषाः क्षायिकमावा नो सन्ति हि अवधिदर्शने एवं ।। तेसिं मिच्छ मभव्वं अण्णाणतियं चणत्थि णियमेण। केवलदसण भावा केवलणाणेव णायब्वा ।।104 ।। तेषां मिथ्यात्वं अभव्यत्वं अज्ञानत्रिकं च नास्ति नियमेन । के बलदर्शने मावा के बलज्ञानवत् ज्ञातव्याः ।। अन्वयार्थ - (चक्खुजुगे) चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन में रखाइयसम्मत्तचरणहीणा, कादिकसम्पवलक्षाविद शनि को छोड़कर सेसा खाइयभावा) शेष क्षायिक भाव (णो संति) नहीं होते हैं (एव) इसी प्रकार (ओहि देसणे) अवधिदर्शन में जानना चाहिए तथा (तेसि) उस अवधिदर्शन में (मिच्छ मभव्वे) मिथ्यात्व, अमव्यत्व (अण्णाणतिय) अज्ञानत्रिक (णियमेण) नियम से (पत्थि) नहीं होते हैं। (केवलदसण) केवेलदर्शन में (के वलणाणेण) केवलज्ञान के समान (मावा) भाव (णायवा) जानना चाहिये। संदृष्टि नं. 71 चक्षु-अचक्षुदर्शन भाव.(46) चक्षु, अचक्षु दर्शन में 46 भाव होते है जो इस प्रकार है - औपथमिक भाव 2, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, कुज्ञान , ज्ञान 4, झायो. लब्धि 5, दर्शन 3, वेदक सम्यक्त्व, सरागसंयम, संयमासयम, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिध्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 गुणस्थान मिथ्यात्व आदि 12 होते हैं। स्पष्टीकरण के लिये देखें संदृष्टि ।। (122)

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