Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 127
________________ संदृष्टि नं. 68 परिहारविशुद्धि संयम भाव (28) परिहार विशुद्धि संयम में 28 भाव होते हैं, जो इस प्रकार हैं - वितीयोपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्य, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षयो. लन्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, सराग संयम, मनुष्यगति, कषाय, पुरुषवेद, शुभ लेश्याउ, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व, गुणस्थान प्रमत्त और अपमत्त दो होते हैं। संदृष्टि निम्न प्रकार अभाव गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति । भाव | 28 (उपर्युक्त) 3 (पीत, पद्म, 28 (उपर्युक्त ) लेश्या, वेदक सम्यक्त्व) अ.प. संदृष्टि नं.69 सूक्ष्मसांपराय संयम भाव (22) सूक्ष्मसांपराय संयम में 22 माव होते हैं जो इस प्रकार है - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, ज्ञान , दर्शन 1, भयो. लब्धि 5, सराग संयम, मनुष्यगति, सूक्ष्म लोभ, शुक्ल लेश्या, अज्ञान, असिदत्व, जीवत्व, मध्यत्व । इसमें एक 10वां गुणस्थान मात्र होता है। संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छिति । भाव 10 सूक्ष्म | 22 (उपर्युक्त, अभाव सम्पराय जहखाइए वि एदे सरागजमलोहहीणभावा हु । उवसमचरणं खाइयभावा य हवंति णियमेण ||102|| यथाख्यातेऽपि एते सरागयमलोभहीनभाया हि । उपशमचरणं क्षायिक भावाश्च भवन्ति नियमेन || अन्वयार्थ - (जइखाइए वि) यथाख्यात चारित्र में उपर्युक्त सभी भाव (सरागजम लोहहीणभावा) सरागचारित्र, लोभ को छोड़कर(च) और (120)

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