Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur
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गुणस्थान
अनि.
क. अवेद
सूक्ष्म.
उपशांत
क्षीण मोह
संयोग
केवली
भाव भाव व्युच्छित्ति
3
2
2
13
।
25
22
सासादन 3 ( कुज्ञान 2, स्त्री वेद}
21
20
14
भाव 33 ( कुज्ञान 2, दर्शन 2 क्षयोपशम लब्धि 5, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिध्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक
अभाव
आव 3)
30 (उपर्युक्त 33मिथ्यात्व, अभव्यत्व,
नरकगति )
28
(142)
31
संदृष्टि नं. 88 अनाहारक मार्गणा भाव ( 48 )
32
अनाहारक मार्गणा में 48 भाव होते है जो इस प्रकार है उपशम सम्यक्त्व, क्षयो. शायिक भाव 9, मति, श्रुत, अवधि ज्ञान, कुमति, कुश्रुत ज्ञान, दर्शन 3, लब्धि 5, क्षयोपशम सम्यक्त्व, गति 4, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान मिष्यात्व, सासावन, असंयत, सयोग के चली ये चार होते है। संवृष्टि इस प्रकार है ।
अभाव
गुणस्थान भाव व्युच्छिति मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
33
39
-
15 ( उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक भाव, 9, क्षयोपशम सम्यक्त्व; ज्ञान 3, अवधि दर्शन)
18 ( उपर्युक्त
15+ मिथ्यात्त्व, अभव्यत्व, नरकगति)

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