Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 150
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छिति भाव अभाव असंयत |29 उपम 35 आयकराला, पर सम्यक्त्व, ज्ञान उपशम सम्यक्त्य, मिथ्यात्व, अभव्यत्व, ३, दशन, क्षयोपशम सम्यक्त्व, स्त्रीवेद, कज्ञान 2) लाप आयो, लब्धि 5, ज्ञान 3, 15, झयोपशम सम्यक्त्व, गति दर्शन 3, गति, कषाय 3, कषाय 4, लिग 2, लेश्या 6, लिंग 2, लेश्या असंयम, अज्ञान, 5, असंयम, असिद्धत्व, पारिणामिक अज्ञान) भाव 2) सयोग (क्षायिक 14 (क्षायिक भाव , | 34 (औपशमिक केवली दानादि । मनुष्यगति, शुक्ल । सम्यक्त्व, क्षयो. लब्धि लब्धि, क्षायिक लेश्या, असिद्धत्व, 5, क्षायो. सम्यक्त्व, ज्ञान 3, दर्शन 3, गति ३, लेश्या भव्यत्व, कषाय, लिंग 3, कुज्ञान असिद्धत्व 2, लेश्या , मिथ्यात्व, मनुष्यगति) असंयम, अभव्यत्व, अज्ञान) टिप्पण:- अनाहारक मार्गणा में सासादन गुणस्थान में नरक गति का अभाव रहता है स्लीवेद की व्युच्छित्ति सासादन गुणस्थान में ही हो जाती है। तथा उपशम सम्यक्त्व से द्वितीयोपशम ग्रहण करना चाहिए। चारित्र शुक्ल जीवत्व, भव्यत्व) अरहंतसिद्धसाहूतिदयं जिणधम्मवयणपडिमाओ । जिणणिलया इदिएदे णव देवा दितु मे बोहिं ।।115|| अर्हत्सिद्धसाधुत्रितयं जिनधर्मवचनप्रतिमाः । जिननिलया इत्येते नव देवा दवतु मे बोधि || अन्वयार्थ - (अरहतसिद्धसाहू तिदय) अहंत सिद्ध और तीन साधु परमेष्ठी अर्थात् आचार्य, उपाध्याय और साधु (जिणधम्मवयण पडिमाओ) जिनधर्म, जिन वचन जिन प्रतिमा (जिणणिलया) जिन चैत्यालय (एदे) ये रणव) नव (देवा) देवता (में) मुझे (बोहि) बोधि अर्थात् रत्नत्रय (दिंतु) दे। (143)

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