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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव .
अभाव मिश्र
bs (उपर्युक्त | (उपर्युक्त - अवधि 24+अवधिदर्शन +3 दर्शन)
मियान - वान असंयत । (असंयम) 12s (सम्यक्त्व 1, ज्ञान 35 (कुज्ञान 3, मिथ्यात्व,
दर्शन , क्षायोपशमिक अभव्यत्व) लन्धि , असयम, मनुष्यगति, कवाय, पुरुषवेद शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिन्दत्व जीवत्व और भव्यत्व)
तण्णिव्वत्तिअपुण्णे असुहतिलेस्सेव उवसमं सम्म। वेभंग ण हि अयदे जहण्णकावोदलेस्सा हु ॥68।।
तन्निवृत्यपूर्णे अशुभत्रिलेश्या एव, उपशमं सम्यक्त्वं ।
विमंगं न हि अयते जघन्यकापोतलेश्या हि || अन्वयार्थ - (तण्णिव्वत्तिअण्णे) भोग भूमिज मनुष्यों के निवृत्यपर्याप्त अवस्था में (असुहृतिलेस्सेव) तीन अशुभ लेश्याएं ही होती हैं। (उवसमै सम्म) उपशम सम्यक्त्व (विभंग) विभंगावधि ज्ञान (ण हि) नहीं होता है। (अयदे) तथा चतुर्थ गुणास्थान में (जहण्णकाबोदलेस्सा हु) जघन्य कापोत लेश्या होती है।
संदृष्टि नं. 25 भोगभूमिज मनुष्य निर्वृत्यपर्याप्तक (31) मोगभूमिज मनुष्य के निर्दृत्य पर्यास अवस्था में 11 भाव होते है। जो इस प्रकार है -सायिक सम्यक्त्व, कृतकृल्य वेदक, ज्ञान 3, कुशान 2, दर्शन 3, क्षायोपशमिक लब्धि 5, असंयम, मनुष्यगति, कषाय 4, पुरुषवेद, अशम लेश्या 3, अज्ञान, असिदत्व, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव 31 गुणस्थान मिध्यात्व, सासादन, और असंयत ये तीन ही होते है।
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