Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur
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गुणस्थान भाव व्युच्छिति भाव
अभाव शरलोभ, 21 (मायिक सम्यक्त्व,१(उप. चारित्र, क्षायिक सराग संयम) मनि आदि । ज्ञान, दर्शन चारित्र, पीत, पदम
3, कार्यापशमलब्धि श्या, क्षायो. सरागसंयम, मनुष्यगति, सम्यक्त्व, पुल्लिंग संज्वलन लोभ कषाय, क्रोध, मान, माया शुक्ल लेश्या, अज्ञान, | कषाय) असिदत्व, जीवत्व, मव्यत्व)
उप.
(उपशम चारित्र)
20 (उपर्युक्त 21 में से | 10 (उपर्युक्त 9 में से लोभ कषाय सराग उप. चारित्र कम करना संयम कम करना तथा | लोभ कषाय तथा सराग उप. चारित्र जोड़ना) संयम जोड़ना)
श्रीम. |13 (मति आदि |20 (सायिक चारित्र, | | 10 (उपशम चारित्र,
4 ज्ञान, दर्शन,सायिक सम्यक्त्व, मति| सराग संयम, क्षायो. क्षायो लन्धि , आदि 4 ज्ञान, दर्शन 3, | सम्यक्त्व, कषाय, अज्ञान) क्षायो. लब्धि, । पुल्लिग, पीत, पद्म, मनुष्यमति, शुक्ल
| लेश्या) लेश्या, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, मव्यत्व)
केवलणाणे खाइयभावा मणुवगदी सुक्कलेस्साई । जीवत्तं भव्वत्तमसिद्धत्तं चेदि चउदसा भावा 1197।। केवलज्ञाने क्षायिकभावा मनुष्यगतिः शुक्ललेश्या।
जीवत्वं भव्यत्वमसिद्धत्वं चेति चतुर्दश भावाः 11 अन्वयार्थ - (केवलणाणे) केवलज्ञान में (खाइयभावा) क्षायिक भाव (मणुवगदी) मनुष्यगति (सुक्क लेस्साइ) शुक्ललेश्या (जीवत्त) जीवत्व (भव्वतं) भव्यत्व (च) और (असिद्धत्त) असिद्धत्व (इदि) इस प्रकार (चउदसा) चौदह (भावा) भाव जानना चाहिए।
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