Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 111
________________ पुंवेदे संदिस्थीणिरयमदीहीणसेसओदइया । मिस्सा भावा तियपरिणामा खाइयसम्मतवसमसम्म|| पुंवेदे षंढ स्त्रीनरकगतिहीनशेषौदयिकाः मिश्रा भावाः त्रिकपारिणामिकाः क्षायिकसम्यक्त्वमुपशमं सम्यक्त्यै॥ अन्वयार्थः- (पुंवेदे) पुरुषवेदमें (संढिस्थीणिरयगदीहीण)नपुसंक वेद, स्वीवेद, नरकगति को छोड़करसेसओदइया) शेष सभी औदयिक भाव होते हैं। (मिस्साभावा) सभी क्षायोपशामिक भाव (तिय परिणामा) सीदे पारिपामिक माम मामयमपात उनसमंसम्म)क्षायिक सम्यक्त्व और उपशम सम्यक्त्व ये सभी भाव पाये जाते हैं। इत्थीवेदे वि तहा मणपज्जवपुरिसहीण इत्थिजुदै । संढे वि तहा इत्थीदेवगदीहीणणिरयसैटजुदै ।।911। स्त्रीवेदेऽपि तथा मनःपर्ययपुरुषहीनस्लीयुक्तं । षंढे ऽपि तथा स्त्रीदेवगतिहीननरकषंढयुक्ताः ॥ अन्वयार्थ :- (इत्थी वेदे वि तहा) स्त्री वेद में उपर्युक्त सभी भावों में से (मणपज्जव-पुरिस हीण इत्यिजुदं) मनः पर्यय ज्ञान, पुरुष वेद को निकालकर स्त्री वेद को जोड़ देना चाहिए । इसी प्रकार(संढे वि तहा) नपुंसकवेद में स्त्रीवेदोक्त सभी भावों में (इत्थीदेवगदीहीणणिरयसंदजुर्द) स्वी वेद, देवगति को छोड़कर नरकगति, नपुंसकवेद और जोड़ देना चाहिए। संदृष्टि नं. 56 पुंवेद भाव (41) पुवेद में 4। मावों का सद्भाव पायाजाता है वे भाव इस प्रकार से संयोजित करना चाहिए । उपशम सम्यक्त्व, शायिक सम्यक्त्व, झायोपशमिक 18 भाव, तिर्यच, देव, मनुष्य गति, कषाय 4, पुल्लिंग, लेश्या 6, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, अस्मिात्य, पारिणामिक । प्रथम गुणस्थान से नौवेगुणस्थानतक यहाँ गुणस्थान जानना चाहिए । संदृष्टि इस प्रकार जानना चाहिए (104)

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