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गुणस्थान भाव व्युच्छिति
भाव
अभाव
126 (पूर्वोक्त 29-पीत, पदम लेश्या, देवक सम्यक्त्व) 26 (पूर्वोक्त )
15 (पूर्वोक्त 12 + पीत पदम लेश्या वेदक सम्यक्त्व) 15 (पूर्वोक्त)
७ (सवेद) 1 (पुंवेद)
१ (अवेद) (कोष मान, 25 (पूर्वोक्त 26 -
माया) पुरुषवेद)
16 (पूर्वोक्त 15 + पुवेद)
संदृष्टि नं.57
स्त्रीवेद भाव (40) स्त्री वेद में 40 भावों का सद्भाव जानना चाहिए ऊपर वेव में जो भाव कहे। उनमें से मात्र मनः पर्थयशान कम देना चाहिए। शेष भाव सम्पूर्ण पुंवेदवत् जानना चाहिए । गुणस्थान प्रथम से नौ तक जानना चाहिए | भाव स प्रकार से है - उपशम सम्यक्त्य, सायिक-सम्यक्त्व, शायोपशमिक 17 भाव, तिर्यच, देव, मनुष्यगति, कषाय, स्त्रीवेद, लेश्या 6, मिथ्यावर्शन असंयम, अज्ञान, असिखत्य, पारिणामिक भाव व्युष्छित्ति और भाव सदभाव में पुवेद की व्यवस्था जानकर, उसी सारणी का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु अभाव भावों में पुवेद में कहे गये अभाव भाव से मनःपर्यय शान कम देना चाहिए । संवृष्टि निम्न प्रकार से है - गुणस्थान भाव व्युछित्ति
। अभाव
१(सवेव) 9(अवेद)
(106)