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संदृष्टि नं.58
नपुंसकवेद भाव (40) नपुंसकवेद में पानी का सामना स मेत में । मागका जो अस्तित्व कहा गया है उसमें से मन: पर्यय ज्ञान कम कर देना चाहिए । तथा देवगति के स्थान पर नरकगति की संयोजना करना चाहिए | शेष भाव व्यवस्था पुवेदवत् ही है। भाव इस प्रकार से है . उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव, तियंच, मनुष्यगति, नरकगति, कषाय 4, नपुंसक वेद, लेश्या 6, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक 31 गुणस्थान - प्रथम से नी तक जानना चाहिए। संदृष्टि इस प्रकार से है. गुजस्थान भाव न्युच्छित्ति भाव
अभाव
१(सदेव) 9(अयेव ।
कोहचउक्काणेक्के पगड़ी इदरा य उवसम चरण खाइयसम्मत्तूणा खाइयभावा य णो संति ।।92|| क्रोधचतुष्काणा एका प्रकृतिः, इतराश्च उपशमं चरण
सायिक सम्यक्त्वोनाः क्षायिकभावाश्च नो सन्ति । एवं माणादितिए सुहुमसरागुत्ति होदि लोहो हु। अण्णाणतिए मिच्छा-इस्सियहोति भावा हु।1931 एवं मानावित्रि के सूक्ष्मसराग इति भवति लोभो हि ।
अज्ञानत्रिके मिथ्यादृष्टेः च भवन्ति भावा हि ॥ अन्वयार्थ :- (कोहचउक्काणेक्के ) क्रोध चतुष्क में से विवक्षित एक कषाय (य) और (इदरा) अन्य तीन कषायें (उपशमं चरण) उपशम
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