Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 82
________________ स्वर्ग में तेजोलेश्या का मध्यम अंश, सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में तेजोलेश्या का उत्कृष्ट अंश एवं पद्मलेश्या का जघन्य अंश है | ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र इन छह स्वर्गों में पद्मलेश्या का मध्यम अंश है | सतार, सहन्द्रा में परमालेल्या का अंश इदं शुक्ल लेश्या का जघन्य अंश है। गाथा में "आणदतेरे" शब्द का प्रयोग किया गया अर्थात् आनत, प्राणत, आरण, अच्युत और नव गैवेयक इन तेरह स्थानों में मध्यम शुक्ललेश्या है इस प्रकार जानना चाहिये, एवं नव अनुदिश और पंच अनुत्तर विमानों में उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या होती है। पुंवेदो देवाणे देवीणं होदि थीवेदं । भुवणतिगाण अपुण्णे असुहृतिलेस्सेव णियमेण ||740 पुंवेदो देवानां देवीनां भवति स्त्रीवेदः । भुवनत्रिकानां अपूर्णे अशुभत्रिलेश्या एव नियमेन || अन्वयार्थ :- (देवाण) देवों में {{वेदो) पुंवेद (देवीण) देवियों में (थीवेद) स्त्रीवेद (होदि) होता है। (भुवणतिगाण) भवनत्रिक की (अपुण्णे) अपर्यासक अवस्था में (णियमेण) नियमसे (असुहतिलेस्सेव) अशुभ तीन लेश्यायें ही पाई जाती हैं। कप्पित्थीणमपुण्णे तेऊलेस्साए मज्झिमो होदि। उभयत्थ ण वेभंगो मिच्छो सासणगुणो होदि ।।5।। कल्पस्त्रीणामपूर्णे तेजोलेश्यायाः मध्यमो भवति । उभयत्र न विमंग मिथ्यात्वं सासादनगुणो भवति । अन्वयार्थ :- (कप्पित्थीणमपुण्णे) कल्पवासी स्त्रियों के अपर्याप्तक अवस्था में (तेऊलेस्साए) पीत लेश्या के (मज्झिमो) मध्यम अंश होते हैं। (उभयत्र) भवनत्रिकदेव, देवी और कल्पवासी देवीयों में रण वेभंगो) विभंग ज्ञान नहीं होता है | (मिच्छो) मिध्यात्व और (सासणगुणो) सासादन गुणस्थान होता है। सोहम्मादिसु उवरिमगेविज्जतेसु जाव देवाण । णिचत्तिअपुण्णाणंण विभंग पदमविदियतुरियठाणा ||76|| सौधर्मादिषु उपरिमग्रै वेयकान्तेषु यावद्देवानां । निवृत्यपूर्णानां न विभंग प्रथमद्वितीयतुर्यस्थानानि ॥ (75)

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