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मानत, प्राणत, अश्रण, अच्युत एवं नौ ग्रैवेयक इन 13 स्वर्गों में 31 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- इनके भाव आदि का समस्त कथन सौ धर्म युगल के ही समान है मात्र इन आनत आदि 13 में पीत लेश्या के स्थान पर शुक्ल लेश्या समझना चाहिए । संदृष्टि इस प्रकार है दे संदृष्टि सौ धर्म ऐशान स्वर्ग (32)
-
संदृष्टि नं. 40 आनतादि 13 स्वर्ग भाव ( 31 )
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
मिथ्यात्व
2
सासादन
मिश्र
अविरत
सासादन
अविरत
3
0
2
2
-
भाव
2
24
2
༡༡
चार्ट नं. 41 आनतादि 13 अपर्याप्त भाव ( 30 )
23
26
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आनतादि 13 की अपर्याप्त अवस्था में 30 भाव होते हैं जो इस प्रकार है इनके भाव आदि का समस्त कथन सौधर्म युगल की अपर्याप्त अवस्था के ही समान है । मात्र पीत लेश्या के स्थान पर शुक्ल लेश्या समझना चाहिए। संदृष्टि इस प्रकार है - दे. सौधर्म ऐशान स्वर्ग अपर्याप्त ( 33 )
गुणस्थान भाव व्युच्छिसि ।
भाव
मिथ्यात्व
23
21
-
26
अभाव
(85)
7
अभाव
9
8
5
7
9
4