Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 107
________________ कम्मइये णो संति हु मणपज्जसरागदेसचारितं । वेभंगुवसमचरणं साणे धीवेदवोच्छेदो ||87|| कार्मणे नो सन्ति हि मनःपर्ययसरामदेशचारित्राणि | विभंगोपशमचरणे साने स्त्रीवेदव्युच्छेदः ॥ अन्वयार्थ :- (कम्मइये) कार्मण काययोग में (मणपज्नसरागदेस चारित्त) मनः पर्ययज्ञान, सरागचारित्र, देशचारित्र, (वेभंगुक्समचरणं) विभंगावधिज्ञान, उपशम चारित्र (हु) निश्चय से ये भाव (णो) नहीं (संति) होते हैं (साणे) और सासादन गुणस्थान में (थीवेदवोच्छे दो) स्त्री वेद की व्युच्छिति हो जाती है। विदियगुणे णरयगदी णात्थे दुसा अत्थेि अविरदे ठाणे| दुतिउणतीसणवयं मिच्छादिसुचउसुवोच्छेदो||88|| द्वितीयगुणे नरकगतिः नास्ति तु सा अस्ति अविरते स्थाने । द्वित्र्येकानत्रिंशत् नवकं मिथ्यादिषु चतुर्पु व्युच्छे दः ।। अन्वयार्थ :- कार्मण काययोग में (विदियगुणे) सासादन गुणस्थान में (णिरयगदी) नरकगति (णत्थि) नहीं होती है। (अविरदे ठाणे) चतुर्थ गुणस्थान में (सा) वह नरकगति (अत्थि) होती है। (मिच्छादिस) मिथ्यात्व गुणस्थान, सासादन गुणस्थान , अविरत सम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली गुणस्थान में (दु तिउतीसं णवयं) दो, तीन, उनतीस और नौ भावों की क्रमशः (वोच्छे दो)व्युच्छिति होती है। संदृष्टि नं. 53 कार्मण काययोग भाव (48) कार्मण काययोग में 8 भाव होते हैं। वे इस प्रकार से जानना चाहिए - 53 भावों में से, उपशग चारित्र, मनःपर्ययज्ञान, कुअवधिज्ञान, संयमासयम, सराग संयम ये पाँच भाव कम करें, शेष भावों की संख्या वहाँ समावरूप से जानना चाहिए । गुणस्थान प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और 13 वां जानना चाहिए। संदृष्टि निम्न प्रकार से है. (100)

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