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अबुदिसु अगुसरेसु हिमाश देला हवंति लट्ठिी । तम्हा मिच्छमभव्वं अण्णाणतिगं चण हि तेसि ॥॥
अनुदिशेषु अनुत्तरेषु जाता देवा भवन्ति सदृष्ट यः ।
तस्मान्मिथ्यात्वमभव्यत्वं अज्ञानत्रिकं च न हि तेषां ।। अन्वयार्थ :- (अणुदिसु) नव अनुदिशऔर (अणुत्तेरसु) पंच अनुत्तरों में (जादा) उत्पन्न (देवा) देव (हि) नियम से (सचिट्ठी) सम्यग्दृष्टि (हवंति) होते हैं (तम्हा) इसलिये (तेसिं) उनमें (हि) नियम से (मिच्छमभव्वं) मिथ्यात्व, अभव्यत्व और (अण्णाणतिग) कुमति, कुश्रुत और विभंगज्ञान (ण) नहीं (हवंति) होते हैं।
संदृष्टि नं. 42
अनुदिश आदि 14 भाव (26) नौ अनुदिश और पांच अनुसर इन 14 स्थानों में 26 माव होते नो इस प्रकार है - सम्यक्त्व 3, ज्ञान, दर्शन 3, मल्यो. लन्धि 5, देवमति, कपाय, शुक्ल लेश्या, पुल्लिंग, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व और भव्यत्व । इन 14 स्थानों में नियम से सभी देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं अतः इनके गुणस्थान एक 'अविरत सम्यग्दृष्टि (4) ही होता है । संदृष्टि इस प्रकार हैगुणस्थान भाव व्युच्छिति भाव
अभाव मिथ्यात्व
26 (उपर्युक्त)
इति गति मार्गणा
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