Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 81
________________ तदपज्जतीसु हवे असुहतिलेस्सा हु मिच्छदुगठाण। वेभंगंचण विज्जदि मणुवगदिणिरूविदा एवं ||70|| तदपर्यासिकासु भवेदशुभत्रिलेश्या हि मिथ्यात्वद्विकस्थान । विमंगं च न विद्यते मनुष्यगतिनिरूपिता एवं ॥ अन्वयार्थ - (तदातासु, भांग भूमिज निर्वृत्य पर्याप्तक स्त्रियों के अपर्याप्त अवस्था में (असु हतिलेस्सा) तीन अशुभ लेश्याएं (मिच्छ दुगठाण)मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं। (च) और (वेभंग) विभंगावधि ज्ञान (ण विनदि) नहीं होता है (एव) इस प्रकार (मणुवगतिणिरुविदा) मनुष्यगति का निरूपण किया। संदृष्टि नं.27 भोगभूमिज स्त्री निर्वृत्यपर्याप्त (25) भोगभूमिज स्त्री के निर्वत्यपर्याप्त अवस्था में 25 भाव होते है | जो इस प्रकार हैकुशान 2, दर्शन 2, क्षायोपशमिक लब्धि , असंयम, मनुष्यगति, कषाय 4, स्त्रीवेद, अशुभ ३ लेश्या, अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव । गुणस्पान मिथ्यात्व और सासादन ये दो होते है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव मिथ्यात्व (मिथ्यात्व 25 (उपर्युक्त) | (उपर्युक्त) अभव्यत्व) सासादन 2 (कुज्ञान 2) [23 (उपर्युक्त 25-2 12(मिथ्यात्व, अभव्यत्व) मिथ्यात्व, अभव्यत्व) अभाव देवाणं देवगदी सेसं पज्जत्तभोगमणुसं वा । भवणतिगाणं कपित्थीणं ण हिखाइये सम्म ||1|| देवाना देवगतिः शेषाः पर्याप्तभोगमनुष्यवत् । भवनत्रिकाणां कल्पस्त्रीणां न हि क्षायिक सम्यक्त्वं ।। अन्वयार्थ :- (देवाणं) देवों के (देवगदी) देवगति होती है (सेस) शेष कथन (पज्जत्तभोगमणुस वा) पर्याप्त भोग भूमिज मनुष्यों के समान है विशेषता यह है कि रमवणतिगाणं) भवनत्रिक अर्थात् भवनवासी व्यंतर, ज्योतिषी देव देवियों के और (कपित्त्यीणं) कल्पवासिनी देवियों के (74)

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