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संद) स्त्रीवेद नपुंसक वेद, (अण्णगीतिदयमसुहतियलेस्स) मनुष्यगति से अन्य तीन गतियाँ, तीन अशुभ लेश्याएँ (अवणिय) कम करके (सेसा) शेष 13 औदयिक भाव (हुति हु) होते हैं।
मावार्थ -मोग भूमिज पर्याप्तक मनुष्यों के 2 औपशमिक भावों में से उपशम सम्यक्त्व तथा 9 क्षायिक भावों में से क्षायिक सम्यक्त्व मात्र होता है। 18 क्षायोपशमिक भावों में सेमनःपर्यय ज्ञान, देशसंयम और सरागचारित्र इन तीन भावों को छोड़कर शेष पन्द्रह भाव होते हैं। वे पन्द्रह भाव इस प्रकार हैं - तीन सम्यग्ज्ञान, तीन कुज्ञान, तीन दर्शन, पाँच क्षायोपशमिक लब्धि और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व । 21 औदयिक भावों में से स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, नरकगति, तिर्यंचगति, देवगति, कृष्ण, नील और कापोत लेश्या ये आठ भाव कम करने पर शेष 13 भाव होते हैं। वे तेरह भाव इस प्रकार हैं - पुरुष वेद. मनुष्यगति चार कषाय, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व तीन शुभ लेश्याएँ।
संदृष्टि नं. 24 भोगभूमिज मनुष्य पर्याप्तक भाव (33) भोगभूमिज मनुष्य के पर्याप्तक अवस्था में 33 भाव होते है । जो इस प्रकार है सम्यक्त्व, ज्ञान 3,कुज्ञान3, दर्शन, झायोपशमिक लब्धि, असंयम, मनुष्यगति, कषाय 4, पुरुषवेद, शुभ लेश्या , अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव
गुणस्थान मिथ्यात्वादि 4 होते है गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव . । अभाव मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, |26 (कुज्ञान 3, दर्शन 17 (सम्यक्त्व ३, ज्ञान 3, अभव्यत्व)
2, लायो.लब्धि 5, अवधि दर्शन) असंयम, मनुष्यगति, कषाय 4, पुरुषवेद, शुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धाव, मिथ्यात्व,
पारिणामिक गाव ) सासादन ३ (कुज्ञान 3) 24 (उपर्युक्त 26- 19(उपर्युक्त T+मिथ्यात्व
मिथ्यात्व, अभव्यत्व) | अमव्यत्व)
जमाव
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