________________
तिर्यंच में उत्पन्न होगा। अतः इस प्रकार भोग भूमि के तिर्यचों के क्षायिक सम्यग्दर्शन का सद्भाव पाया जाता है।
संदृष्टि नं. 14 पर्याप्त भोगभूमिज तिर्यञ्च भाव (33) पर्याप्त भोग भूमिज तिर्यन्च के 33 भाव होते हैं जो इस प्रकार है - क्षायिक सम्यक्त्व, झायोपशमिक सम्यक्त्व, औपशमिक सम्यक्त्व, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि,मति, श्रुत, अवधि ज्ञान, चक्षु, अचा, अवधि दर्शन, क्षायोपशमिक पांच लब्धि, तिर्यञ्च गति, क्रोध,मान, माया लोभ, पुल्लिग, पीत, पदम, शुक्ल लेश्या, मिथ्यात्व, असयम, अज्ञान, असिद्धत्य, जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व । गुणस्थान आदि के चार होते है । संदृष्टि इस प्रकार है । गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव गिच्यात्य मामात्न, 126 कुमति, (1)सायिक सम्यक्त्व, अमव्यत्व
कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, औपशमिक सम्यक्त्त्व, चक्षु अचशु दर्शन,
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, कायोपशमिक पाँच लन्धि, तिर्यञ्चगति, मति, श्रुत अवधि ज्ञान, कोष, मान, माया, अवधि दर्शन लोभ कवाय, पुल्लिंग, पीत पद्म शुक्ल लेश्या मिथ्यात्व, असंथम, अज्ञान, असिदत्व,जीवत्व,
भव्यत्व,अभव्यत्व सासादन | कुमति, {24 कुमति, 11) क्षायिक सम्यक्त्व, कुश्रुत, कुश्रुत, कुअवधि
औपशमिक सम्यक्त्व, ज्ञान, चक्ष, मचक्षु कुअवधि ज्ञान
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, दर्शन, शायोपशमिक पाँच
मति, श्रुत, अवधि ज्ञान, लब्धि, तिथंच गति, अवधिदर्शन, मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, अभव्यत्व + कुज्ञान 3 - लोभ कवाय, मिश्रज्ञान} पुल्लिंग, पीत पद्म शुक्ल लेश्या, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व भव्यत्व
(51)
सासादन