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तेसिमपज्जत्ताणं सण्णाणतिगोहिदंसणं च वेभंगं । वेदगमुवसमसम्म देसचरित्तं च णेवत्थि 1155|| तेषामपर्याप्तानां सज्ज्ञानत्रिकावधिदर्शनं विभंगः । वेदकमुपशमसम्यक्त्वं देशचारित्रं नैवास्ति ॥ अन्वयार्थ (तेसिमपज्जत्तार्ण) उन्हीं की अर्थात् कर्मभूमिज तिर्यञ्चों की अपर्याप्त अवस्था में ( सण्णाणतिगो हिदंसणं) तीन सम्यग्ज्ञान अवधिदर्शन (च) और (वेभंग) विभंगावधि ज्ञान (वेदगभुवसमसम्म) वेदक सम्यक्त्व, उपशमसम्यक्त्व (च) और (देसचरित) देश चारित्र (वत्थि) नहीं होता है ।
भावार्थ - कर्मभूमिज तिर्यंच की अपर्याप्त अवस्था में तीन सम्यग्ज्ञान, विभंगावधि ज्ञान, अवधिदर्शन, वेदक सम्यक्त्व, देश संयम, उपशम सम्यक्त्व नहीं होता क्योंकि अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दर्शन के साथ तिर्यंच गति में उत्पन्न होने का अभाव है।
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संदृष्टि नं. 13
कर्मभूमिज अपर्याप्त तिर्यञ्च भाव ( 30 )
अपर्याप्त कर्म भूमिज तिर्यच्च के 30 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- कुमति, कुश्रुत ज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, तिर्यंच गति, कोध, मान, माया, लोभ, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग, कृष्ण, नील, कापोत, पीत पद्म, शुक्ल लेश्या, मिथ्यादर्शन, असंयम अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व | गुणस्थान आदि के दो होते हैं संदृष्टि निम्न प्रकार है -
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
भाव
मिथ्यात्व [2] मिथ्यात्व
अभव्यत्व
[30] उपर्युक्त कहे गये (0)
समस्त भाव जानना चाहिए ।
(49)
अभाव