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संदृष्टि नं. 18 भोगभूमिज तिर्यञ्चनी अपर्याप्त (25 भाव) भोगभूमिज तिर्थञ्चनी निर्दत्यपर्याप्त के 25 भाव होते है जो इस प्रकार हैं - कुमति, कुश्रुत ज्ञान, दर्शन 2, क्षायोपशिमक लन्धि , लियंचगति, कषाय 4, स्त्रीलिंग, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 गुणस्थान आदि के 2 पाये जाते हैं। संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान | भाव व्युच्छिति भाव मिथ्यात्व |[2)गिथ्यात्व 25} {उपर्युक्त कथित 10)
अभव्यत्व समस्त भाव)
अभाव
सासादन (2) कुमति |(23{उपर्युक्त 25 - |(2) {मिथ्यात्व,
ज्ञान, कुश्रुत | मिथ्यात्व, अमव्यत्व) अमव्यत्व)
ज्ञान
मणुवेसिदरगदीतियहीणा भावा हवति तत्थेव । णिव्वत्तिअपज्जत्ते मणदेसुवसमणदुर्ग ण वेभंगं ||61।।
मनुष्येष्वितरगतित्रिकहीना भावा भवन्ति तत्रैव ।
निर्वृत्यपर्यास मनोदेशोपशमनद्रिकं न विभंग ।। अन्वयार्थ - (मणुवेसिदरगदीतियहीणा) मनुष्यगति में इतर तीन गतियों से रहित (भावा) शेष सम्पूर्ण ५० भाव (हवंति) होते हैं (तत्थेव) उसी मनुष्य गति में (णिव्वत्तिअपज्जते) निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में (मणदेसुवसमणदुर्ग) मनः पर्ययज्ञान, देशसंयम, उपशम सम्यक्त्व, उपशमचारित्र (वेभग) विभंगावधि ज्ञान ये आठ भाव(ण) नहीं होते हैं।
साणे थीसंदच्छिदी मिच्छे साणे असंजदपमत्ते । जोगिगुणे दुगचदुचदुरिगिवीसंणवच्छिदीकमसो।।621 सासादने स्त्रीषढच्छित्तिः मिथ्यात्वे सासादने असंयतप्रमत्ते । योगिगुणं द्रिक चतुःचतुरेकविंशतिः नवच्छि त्तिः क्रमशः || अन्वयार्थ - तथा उपर्युक्त निर्वृत्यपर्याप्तक अवस्था में (साणे) सासादन
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