Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 72
________________ लद्धिअपुण्णमणुस्से वामगुणद्वाणभावमज्झिम्हि । थी पुंसिदरगदीतियसुहतियलेस्सा ण वेभंगो ॥ 63 ॥ लब्ध्यपूर्णमनुष्ये वामगुणस्थानमावमध्ये । स्त्रीपुंसितरगतित्रिक शुभत्रिकलेश्या न विभंग || अन्वयार्थ - (लद्धिअपुष्णमणुस्से) लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य के (वामगुणद्वाणभावमन्झिम्हि ) मिथ्यात्व गुणस्थान में होने वाले भावों के मध्य में ( थीए सिदरगदीनियस हतियले स्सा) स्त्रीवेद, पुरुषवेद मनुष्यगति से अन्य तीन गतियाँ, तीन शुभलेश्याएँ, (वेभंगो) विभंगावधि ज्ञान (ण) नहीं होता है। विषय स्पष्टीकरण के लिए देखें संदृष्टि 23 1 संदृष्टि नं. 21 लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य भाव ( 25 ) लब्ध्यपर्याप्त अवस्था में मनुष्य के 25 भाव होते है जो इस प्रकार है कुज्ञान 2, दर्शन 2, क्षायोपशमिक लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, नपुंसक वेद, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणमिक भाव 3 | गुणस्थान एक मिथ्यात्व ही होता है । गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति मिथ्यात्व ० भाव 25 (उपर्युक्त ) अभाव मणुसुव्व दव्वभावित्थी पुंसंढ खाइया भावा । उवसमसरागचरणं मणपज्जवणाणमवि णत्थि ॥ 64 मनुष्यवद्द्द्द्रव्यभावस्त्रीषु पुंषण्ढ क्षायिका भावाः । उपशमसरामचरण मन:पर्ययज्ञानमपि नास्ति IL अन्वयार्थ ( मणुसुब्ब) मनुष्य के समान (दव्वभावित्थी) द्रव्य और भाव स्त्री वेदी में (पुंसंढ खाइया भावा) पुरुष वेद, नपुसंकवेद, नव क्षायिक भाव ( उवसमसरागचरणं) उपशम चारित्र, सराग चारित्र (मणपज्जवणाणमवि) मनः पर्यय ज्ञान ( णत्थि ) नहीं होता है । भावार्थ - सामान्य मनुष्य में जो 50 भावों का सद्भाव बतलाया गया है, वे सभी भाव द्रव्यस्त्री एवं भावस्त्री में जानना चाहिए किन्तु विशेषता यह है (65)

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