________________
संदृष्टि नं. 15 पभोगभूमिज लिञ्च अपर्याप्त भाव (31) अपर्याप्त भोग भूमिज तिर्यच के 31 भाव होते है जो इस प्रकार है - पर्याप्त भोगभूमिज तिर्यच के 33 भावों में उपशम सम्यक्त्व एवं कुअवधि ज्ञान कम करने पर 31 भाव शेष रहते है । गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन और असंयत ये तीन होते हैं संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव T अभाव अविरत |}(कापोत |25} {सम्यक्त्व 2, |t6) {कुमति, कुश्रुत लेश्या,
ज्ञान 3, दर्शन 3, ज्ञान, मिथ्यात्व असंयम, शायोपशमिक लब्धि 5, अभव्यत्व, कृष्णा, नील तिर्यन्च गति) [तियंचगति, कवाय, लेश्या)
पुल्लिंग ।, कम्पोत लेश्या, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, मव्यत्व)
लद्धिअपुण्णतिरिक्खे वामगुणट्ठाणभावमझम्मि । थी'सिदरगदीतिग सुहतियलेस्सा ण वेभंगो ||४||
लब्ध्यपूर्णतिरश्चि वामगुणस्थानभावमध्ये ।
स्त्रीपुंसितरगतित्रिकं शुभत्रिकलेश्या न विभंगः ॥ अन्वयार्थ - (लद्धिअपुण्णतिरिक्खे) लब्ध्यपर्याप्त तिर्यञ्चों के (वामगुण ठाणभावमज्झम्मि) मिथ्यात्व गुणस्थान रूप भाव में (धीपुंसिदरगदीतिग) स्त्रीवेद, पुरुषवेद. तिर्यञ्च गति से अन्य तीन गतियौं (सुहतियलेस्सा) तीन शुभ लेश्याएँ (वेभंगो) विभंगावधि ज्ञान (ण) नहीं होता है।
विशेषार्थ -गाथा में आगत वाम शब्द का विपरीत अर्थ ग्रहण करना चाहिए । प्रसङ्ग में मिथ्यात्व गुणस्थान ग्रहण जानना चाहिए।
(54)