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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
मिश्र
[[{o}
अविरत
अभाव
{25} [उपर्युक्त 24 भाव (B) [उपर्युक्त नौ भाव + अवधि दर्शन अवधि दर्शन मिश्र ज्ञान 3}
कुज्ञान 3
तीन मिश्र ज्ञान- तीन कुज्ञान)
भाव
[28} [ क्षायिक
{2} (असंयम, तिर्यञ्चगति) सम्यक्त्व, औपशमिक
सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक
सम्यक्त्व, मति, श्रुत,
अवधि ज्ञान, चक्षु,
अचक्षु, अवधि दर्शन,
क्षायोपशमिक पाँच
बिर,
तिर्यंचगति, क्रोध,
मान, माया, लोभ,
कषाय, पुल्लिंग, पीत
पद्म, शुक्ल लेश्या
असंयम, अज्ञान असिद्धत्व, नीवत्व भव्यत्व }
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(5) {कुमति, कुश्रुत
कुअवधि ज्ञान, मिथ्यात्व, |अभव्यत्व}
पिव्वत्तिअपज्जत्ते अवणिय सुहलेस्स किण्हतिहजुत्ता । भंगुवसमसम्मं ण हि अयदे अवरकावोदा ||57|| निर्वृत्यपर्याप्त अपनीय शुभलेश्याः कृष्णात्रिकयुक्ताः । विभंगोपशसम्यक्त्वं न हि अयते अवरकापोता || अन्वयार्थ भोगभूमिज पुरुषवेदी तिर्यञ्चों की (णिव्वत्तिअपज्जते) निर्वत्यपर्याप्त अवस्था में (सुहलेस्स) तीन शुभलेश्याएँ (अवणिय) रहित अर्थात् तीन शुभ लेश्याएँ नहीं होती हैं (किण्हतिहजुत्ता) कृष्णादि तीन अशुभ लेश्याएँ पायी जाती हैं । (वेभंगुवसमसम्मं ) विभंगावधि और उपशम सम्यक्त्व (ण हि) नहीं भी होता है (अयदे) चौथे गुणस्थान में
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FIN