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कापोत लेश्या, असेयम एवं तिर्यंचगति इन तीन की व्युच्छित्ति हो जाती है। टिप्पण - 1. भोगभूमिजतिर्यनिर्वृत्यपर्याप्तस्य सासादनगुणे तत्रस्थमतिश्रुताज्ञान व्यस्य असंयतस्थित कृष्णनीललेश्याद्विकस्य च व्युच्छेदः । इत्यस्याः पूर्वार्धगाथाया भावः।
कम्मभूमिजतिरिक्खे अण्णगदीतिदयखाइया भावा। मणपज्जवसमचरण सरागचरियं च णेवत्थि ।।54||
कर्मभूमिजतिरश्चि अन्यगतित्रितयशायिका भावाः |
मनःपयशेमचरण सरागचारित्रं च नवास्ति । अन्वयार्य - (कम्मभूमिजतिरिक्खे) कर्म भूमिज तिर्यञ्चों में (अण्णगदीतिदयखाइया भावा) तिर्यञ्च गति को छोड़कर अन्यतीन गतियाँ, क्षायिक भाव, (मणपज्जवसमचरणं) मनः पर्ययज्ञान, उपशमचारित्र (च) और (सरागचरियं) सरागचारित्र (णेवत्थि) नहीं होता है।
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संदृष्टि नं. 12
अभाव
कर्म भूमिज तिर्यञ्च पर्याप्त (38 भाव) कर्म भूमिन तिर्यचों के पर्याप्त अवस्था में 38 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं . उपशम सम्यक्त्व, कुमति, कुत, कुअवधि ज्ञान, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, क्षायोपशामिक सम्यक्स्य, क्षायोपशमिक पांच लब्धि, संयमासयम, तिर्यकच गति, क्रोध, मान, माया लोम, कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पदम, शुक्ल लेश्या, मिथ्यादर्शन, असंयम, मलान, असिद्धत्व, चक्षु दर्शन अचक्षु दर्शन, अवधिदर्शन, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग, भव्यत्व, अभव्यत्व, नीवत्व, गुणस्थान आदि के पाँध होते हैं संवृष्टि इस प्रकार है।। गुणस्थान भाव व्युच्छिति भाव मिथ्यात्व मिथ्यात्व |1} (चक्षु अचक्षु | औपशमिक अमव्यत्व |दर्शन, कुमति,
सम्यक्त्व, मति, श्रुत कुश्रुत, कु अवधि ज्ञान, शायोपशमिक
अवधि ज्ञान, अवधि पांच लन्धि
वर्शन,सयोपशमिक तिर्यञ्चगति, क्रोध, सम्यक्त्व, संयमासंयम) मान, माया, लोभ, कृष्ण नील कपोत, पीत, पद्म, शुक्ल | लेश्या, मिथ्यात्व,
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