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संदृष्टि नं.3 सामान्यनरक अपर्याप्त भाव {31} मरक गति में अपर्याप्त अवस्था में 31 माव होते हैं जो इस प्रकार है . झायिक सम्यक्त्य, कुशान2, जाना, दर्शन , लब्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, नरकगति, कषाय 4, नपुंसक लिग, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 31 मिथ्यात्व और असंयत ये गुणस्पान दो होते हैं। भाव आदि का कथन नरक मति की पर्याप्त अवस्था बत् जानना चाहिए । विशेषता यह है कि अपर्याप्त अवस्था में विभंगावधि लान न होने से मिथ्यात्व गुणस्यान में 25 भाव होते हैं तथा मिथ्यात्व गुणस्थान में ही कृष्ण नील लेश्या की व्युच्छिति हो जाने
एवं उपशाम सर का ऊनाव जग चौथे रणस्थान में 25 भाव होते हैं। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव । अभाव
116) इमिथ्यात्व {25{चक्षु अच 116) {क्षायिक मिथ्यात्व अभव्यत्व, दर्शन, कुमति, कुश्त | | सम्यक्त्व,मति, श्रुत
कृष्ण, नील ज्ञान, क्षायोपशमिक अवधि ज्ञान, झयोपशमिक लेश्या,कुमति पांच लन्धि, नरकगति, सम्यक्त्व, अवधिवर्शन} कुश्रुत ज्ञान] कृष्ण, नील कापोत
लेश्या, नपुंसक लिंग, चार कषाय अज्ञान, असिखत्व, मिथ्यात्व, असंयम, जीवत्व भव्यत्व
अभव्यत्व 4. अविरत {3} (नरक [25} {सायिक 6) कुमति कुश्रुत ज्ञान,
गति, कापोत सम्यक्त्व, मति, श्रुत | कृष्ण, नील लेश्या, लेश्या, | अवधि ज्ञान, चक्षु | मिथ्यात्व, अमष्यत्व) असंयम) | अचक्षु, अवधि दर्शन,
क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, क्षायोपशमिक | सम्यक्त्व, नरक गति,
कापोत लेश्या,नपुंसक लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व, असंयम, जीवत्व भव्यत्व
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