Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ शंका - तोसिद्धों के क्षायिकदान आदिभावोंकासद्भाव कैसे माना जाय? समाधान-जिस प्रकार सिद्धों के केवलज्ञानरूपसे अनन्तवीर्य का सद्भाव माना गया है उसी प्रकार परमानन्द और अव्याबाध रूप से ही उनका सिद्धों के सद्भाव है। (स.सि. 2/4) केवलणाणं दसणमणतविरियं च खइयसम्मं च । जावत चैदे पण भावा सिद्ध हवंति फुड ॥41|| केवलज्ञाने दर्शनमनन्तवीर्य च झायिकसम्यक्त्वं च । जीवत्वं चैते पंच मावा सिद्धे भवन्ति स्फुट ।। अन्वयार्थ - (सिद्धे) सिद्धों में (फुड) निश्चय से (केवलणाणं) केवलज्ञान (दसणमणतविरियं) केवलदर्शन अनन्तवीर्य रखइयसम्म) क्षायिक सम्यक्त्व (च) और (जीवत्त) जीवत्व (एदे) ये (पण) पाँच (भावा) भाव (हवंति) होते हैं। चदुतिगदुगछत्तीसं तिसु इगितीसं च अडड पणवीसं । दुगइगिवीसं वीसं चउद्दस तेरस भावा हु ॥42।। चतुस्त्रिकविकषत्रिंशत् त्रिषु एकत्रिंशच्च अष्टाष्टपंचविशति द्विकैकविंशतिः विंशतिः चतुर्दश त्रयोदश भावा हि || अन्वयार्थ - मिथ्यात्व आदि गुणस्थानों में क्रमशः (चदुदुगतिशछत्तीस) चौतीस भाव, बत्तीस भाव, तेतीस भाव, छत्तीस भाव (तिसु) और तीन गुणस्थानों में ५, ६३७वेंगुणस्थान में (इगितीसं) इकतीसइकतीस भाव, (अडड पणवीस) अट्ठाइस-अट्टाइस, पच्चीस भाव (दुगइगिवीसं) वाईस भाव, इक्कीस भाव (बीसं) बीस भाव (चउद्दस) चौदह भाव (च) और (तेरस भावा छु) तेरह भाव होते हैं। भावार्थ - प्रथम गुणस्थान में चौतीस भाव होते हैं, दूसरे सासादन गुणस्थान में बत्तीस, तीसरे में तेतीस. चौथे गुणस्थान में छत्तीस, पाँचवें, छठवें, सातवें गुणस्थानों में इकतीस इकतीस, अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थान में अठाईस नवमें के सवेदभाग में अट्ठाईस, अवेदभाग में पच्चीस, दसवें में बाबीस, ग्यारहवें में इक्कीस, बारहवें में बीस, तेरहवें में चौदह और चौदहवें गुणस्थान में तेरह भाव होते हैं। (20)

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151