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अनिवृत्तिद्विकद्विभागे वेदत्रिक क्रोधो मानो माया च ।
सूक्ष्मे सरागचारित्र लोभः शान्ते तु उपशम भावौ || अन्वयार्थ (अणियट्टि दुगदुभागे) अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के दो भागों में अर्थात् सवेद भाग और अवेद भाग में क्रमशः (वेदतियं) तीन वेद (च) और (कोह माण मार्य) क्रोध, मान, माया (सुहमे) एवं सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में (सरागचरियं) सरागचारित्र (लोहो) और लोभ (संते) तथा उपशति मोह गुणस्थान में (उवसमा भावा) औपशमिक भावों की व्युच्छित्ति होती है।
भावार्थ आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान में किसी भी भाव की व्युच्छित्ति नहीं होती है नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के दो भाग हैं - वेद सहित और वेदरहित । वेदसहित - सवेद भाग में पुवेद, स्त्रीवेद और नपुंसक इन तीन वेदों की तथा वेदरहित भाग के अन्त में क्रोध, मान, माया इन कषायों की, अझ प्रकार हा गुणस्थान में कह भागों की व्युच्छित्ति होती है। दसवें गुणस्थान में सरागचारित्र और लोभ कषाय इन दो भावों की व्युच्छित्ति होती है एवं उपशान्त मोह गुणस्थान में औपशमिक सम्यक्त्व (द्वितीयोपशम सम्यकत्व) और औपशमिक चारित्र इन भावों की व्युच्छिति हो जाती है ।
खीणकसाए णाणचउक्कं दंसणतियं च अण्णाणं । पण दाणादि सजोगे सुक्कलेसे गवो छे दो ||39|| क्षीणकषाए ज्ञानचतुष्कं दर्शनत्रिक चाज्ञानं । पंच दानावयः सयोगे शुक्ललेश्याया गतः छेदः ॥ अन्वयार्थ (खीणकसाए) क्षीणकषाय गुणस्थान में (णाणचउक्क) चारज्ञान (दंसणतियं) तीन दर्शन (अण्णा) अज्ञान (च) और (दाणादि) क्षायोपशमिक दानादि (पण) पाँच की लब्धियों और (सजोगे) सयोग केवली गुणस्थान में (सुक्कलेसे) शुक्ललेश्या का ( गवो छे दो ) अभाव अर्थात् व्युच्छित्ति हो जाती है।
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भावार्थ- बारहवें गुणस्थान में मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान, चक्षु, अचक्षु, अवधिदर्शन, अज्ञान, दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य पाँच क्षायोपशमिक लब्धियाँ। इस प्रकार कुल 13 भावों की व्युच्छित्ति ! 2 वें
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