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मिथ्यात्वे मिथ्यात्वमभव्यत्वं साणेऽजातियमयते । कृष्णादितिस्रो लेश्याः असंयमसुरनरकगतिच्छेदः ॥ अन्वयार्थ (मिच्छे ) मिथ्यात्व गुणस्थान में (मिच्छ मभव्वं ) मिथ्यात्व, अभव्यत्व (साणे) सासादन गुणस्थान में (अण्णाणतिदयं ) तीन अज्ञान (अयदम्हि ) असंयत गुणस्थान में (किण्हादितिण्णि) कृष्णादि तीन (लेस्सा) लेश्यायों की (असजं) असंयम, (असुरणिरयगदि) देवगति और नरक गति की (छे दौ) व्युच्छित्ति होती है।
भावार्थ - मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व और अभव्यत्व इन दो भावों का व्युच्छेद होता है । सासादन गुणस्थान में तीन अज्ञान कुमति, कुश्रुत और विभङ्गावधि इन तीन क्षायोपशमिक भावों का व्युच्छेद हो जाता है । तीसरे गुणस्थान में किसी भी भाव की व्युच्छित्ति नहीं होती है, तथा अविरत गुणस्थान में कृष्णादि तीन अशुभ लेश्या, असंयम, देवगति और नरकगति इन छह औदयिक भावों का विच्छेद हो जाता है ।
देसगुणे देसजमो तिरियगदी अप्पमत्तगुणठाणे । तेऊपम्मालेस्सा वेदगसम्मत्तमिदि जाणे ॥37॥ देशगुणे देशयमस्तिर्यग्गतिः अप्रमत्तगुणस्थाने । तेजः पद्मलेश्ये वेदक सम्यक्त्वमिति जानीहि ॥ अन्वयार्थ 37- (देशगुणे) देशव्रत गुणस्थान में (देसजमो ) देशसंयम और (तिरियगदी) तिर्यच गति (अप्पमत्तगुणठाणे) अप्रमत्तगुणस्थान में (तेक पम्मालेस्सा) पीत, पद्म लेश्या तथा (वेदगसम्मत्तमिदि) वेदक सम्यक्त्व की व्युच्छित्ति होती है। इस प्रकार (जाणे) जानना चाहिए।
भावार्थ- पाँचवें गुणस्थान में संयमासंयम और तिर्यंचगति इन दो की व्युच्छित्तिः प्रमत्त. संयत गुणस्थान में किसी भी भाव की व्युच्छित्ति नहीं एवं सातवें गुणस्थान में पीत लेश्या, पद्म लेश्या और वेदक सम्यक्त्व इन तीन भावों की व्युच्छित्ति हो जाती है ।
अणियट्टिदुगदुभागे वेदतियं कोह माण मायं च । सुहमे सरागचरिये लोहो संते दु उवसमा भावा ॥38॥
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