Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 22
________________ तक तीनों सम्यक्त्वों काउपरोक्त प्रकार से कथन जानना चाहिये। चौथे से बारहवें तक मति, श्रुत, अवधि ये तीन सम्यम्ज्ञान और अवधिदर्शन पाये जाते हैं। पंचम गुणस्थान में देशसंयम, छठे से दसवें तक सरागचारित्र और छठे से लेकर बारहवें तक मनः पर्ययज्ञान होता है। संते उवसमचरियं खीणे खाइयचरित्त जिण सिद्धे। खाइयमावा भणिया सेसं जाणेहि गुणठाणे ।। 33 || शान्ते उपशमचरितं क्षीणे क्षायिकचरितं जिने सिद्धे। क्षायिक भावा पणिताः शेष जानीहि गुणस्थाने || अन्वयार्थ - (सते) उपशान्त मोह गुणस्थान में रउवसमचरिय) उपशम चारित्र (खीणे) क्षीणमोह गुणस्थान में (खाझ्यचरित्त) क्षायिक चारित्र एवं (जिण) जिन अर्थात् तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में तथा (सिद्धे) सिद्धों में (खाइयभावा) क्षायिक भाव (भणिया) कहे गये। (सेस) तथा शेष भावों को (गुणठाणे) गुणस्थानों में (जाणेहि) जानना चाहिये। ओदझ्या चक्खुदुगंडण्णाणति दाणादिपंच परिणामा । तिण्णेव सव्व मिलिदा मिच्छ चउतीसभावा हु ।। 34 | औदयिकाः चक्षुकिं अज्ञानत्रिकं दानादिपंच परिणामाः । त्रय एव सर्वे मिलिता मिथ्यात्वे चतुस्त्रिंशदावाः स्फुटं ॥ अन्वयार्थ -(ओदइया) इक्कीस औदयिक भाव (चक्खुदुर्ग) चक्षु, अचक्षु दर्शन (अण्णाणति) अज्ञान तीन (दाणादिपंच) दानादि पाँच लब्धियाँ (परिणामा तिण्णेव) तीनों पारिणामिक भाव ये (सव्व) सभी (मिलिदा) मिलकर (चउतीसभावा) चौतीस भाव (मिच्छ) मिथ्यात्व गुणस्थान में होते हैं। भावार्थ - गति 4, कषाय 4, लिंग 3, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, लेश्या 6, असिद्धत्वये औदयिक भाव के 21 भेद, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, दान, लाभ भोग, उपभोग, वीर्य, जीवत्व, मव्यत्व और अभव्यत्व इस प्रकार सभी संयुक्त करने पर चौतीस भाव मिथ्यात्व गुणस्थान में जानना चाहिए। (15)

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