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मूलभाव (विसुद्धे) विशुद्धि की अपेक्षा रणायव्वा) जानना चाहिए।
भावार्थ - मिथ्यात्व, सासावन और मिश्र इन तीन गुणस्थानों में औदयिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक ये तीन भाव, असंयत, देशसंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत इन चार गुणस्थानों में पाँचों भाव, उपशम श्रेणी के चार गुणस्थानों में पाँचों भाव, क्षपक श्रेणी में औदयिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक ये चार भाव तथा सयोग, अयोग केवली के क्षायिक, औदयिक और पारिणामिक तीन भाव । इस प्रकार गुणस्थानों में मुल भावों की संयोजना जानना चाहिए।
खयिगो हु पारिणामियभावो सिद्धे हवति णियमेण | इत्तो उत्तरभावो कहियं जाणं गुणट्ठाणे || 31 ।।
क्षायिको हि पारिणामिकभावः सिद्धे भवतः नियमेन । ___ इत उत्सरभावं कथित जानीहि गुणस्थाने || अन्वयार्थ -(सिद्धे) सिद्धों में (णियमेण) नियम से (खयिगो) क्षायिक और (पारिणामियभावो) पारिणामिक भाव (हर्वति) होते है (इत्तो) इसके आगे गुणदंठाणे)गुणस्थानों में (उत्तरभादो) उत्तर भावों को (कहियं) कहते हैं सो (जाणं) जानो।
अयदादिसु सम्मत्तति-सण्णाणतिगोहिदसणं देसे। देसजमो छट्ठादिसु सरागचरियं चमणपज्नो।। 32 ।।
अयदादिषु सम्यक्त्वत्रिसज्ज्ञानत्रिकावधिदर्शन देशे ।
देशयमः षष्ठादिषु सरागचारित्रं च मनःपर्ययः || अन्वयार्थ - (अयदादिसु) चतुर्थ आदि गुणस्यानों में (सम्मत्तति) तीन सम्यक्त्व (सण्णाणतिग) तीन सम्यग्ज्ञान (ओहिदसण) अवधि दर्शन (देसे) देशव्रत अर्थात् पंचम गुणस्थान में (देसजमो) देशसंयम (छट्ठादिसु)छठवे आदिगुणस्थानों में सरागचरिय) सरामचारित्र (च) और (मणपज्जो) मनःपर्ययज्ञान होता है।
भावार्य - चौथे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक उपशमसम्यक्त्व, चौयेसेसातवे गुणस्थान तक वेदकसम्यक्त्व एवंचौधेसे चौदहवे गुणस्थान तक क्षायिक सम्यक्त्वा इस प्रकार चतुर्थ गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान