Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 19
________________ क्षायिक भाव है। उपसमसम्म उवसमचरण दुण्णेव उवसमा भावा । चउणाणं तियदसणमतियं जहागानी 31 उपशमसम्यक्त्वमुपशमचरणे दावेव उपशमी भावौ | चतुर्ज्ञानं त्रिदर्शनं अज्ञानत्रिक च दानादयः ।। वेदग सरागचरियं देसजम विणवमिस्समावा हु । जीवत्त भव्यत्तमभव्वत्तं तिणि परिणामो (मा) ।। 26 || वेदकं सरागचरितं देशयम द्विनवमिश्रभावा हि । जीवत्वं भव्यत्वमभव्यत्वं त्रयः पारिणामिकाः ।। अन्वयार्थ - (उवसमसम्म) उपशमसम्यक्त्व (उवसमचरण) और उपशम चारित्र ये (दुण्णेव) दोनों ही (उपसमा भावा) औपशमिक भाव है। (चउणाणं) चार ज्ञान (तियदसणे) तीन दर्शन (अण्णाणतिय) तीन अज्ञान (दाणादी) दानादि पाँचलब्धियां (वेदग) वेदक सम्यक्त्व (सरागचरिय) सराग चारित्र अर्थात् क्षायोपशमिक चारित्र (च) और (देसजम) देशसंयमये (हु) निश्चय से (मिस्सभावा) मिनभाव अर्थात् क्षायोपशमिक भाव के (विणव) अठारह भेद है । (जीवत) जीवत्व (मव्वत्तममत्वत्तं) भव्यत्व और अभव्यत्व ये (परिणामो) पारिणामिक भाव के (तिष्णि) तीन भेद हैं। ओदइओ खलु मावो गदिलेस्सकसायलिंगमिच्छत्तं। अण्णाणमसिद्धतं असंजम चेदि इगिवीसं || 27 ।। औदयिकः खलु भावो गतिलेश्याकषायलिंगमिथ्यात्वं । अज्ञानमसिद्धत्वं असंयमश्चेति एक विशतिः ॥ अन्वयार्थ - (खलु) निश्चय से (गदि लेस्सकसायलिंगमिच्छत) चारगति, छह लेश्या, चार कषाय, तीन लिंग मिथ्यात्व, (अण्णाणमसिद्धत्त) अज्ञान, असिद्धत्व (असंजम) असंयम (इदि) इस प्रकार ये औदयिक भाव के (इगिवीस) इक्कीस भेद हैं। पंचेव मूलभावा उत्तरभावा हवंति तेवण्णा । एदे सब्वे भावा जीवसरूवा मुणेयव्वा ।। 28 || (12)

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