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उवसमसरागचरियं खझ्या भावाय णव यमणपज । रयणत्तयसंपत्तेसुत्तममणुवेसु होति खलु || 20 ।। उपशमसरागचारित्रं क्षायिका भावाच नव च मनःपर्ययः ।
रत्नत्रयसम्प्राप्तेषु मनुष्येषु भवन्ति खलु । अन्वयार्थ - (खलु) निश्चय से (उवसमसरागचरिय) उपशम चारित्र, सरागचारित्र (य) और (णव) नौ (भावा) भाव (खझ्या) क्षायिक (य) और (मणपज्ज) मनःपर्ययज्ञान ये सभी भाव (रयणत्तयसंपत्तेसुत्तममणुवेसु) रत्नत्रय से सहित उत्तम मनुष्यों (मुनिगणों) में (होति) होते हैं।
इति पीठिका - विचारणं । मावा खझ्यो उवसम मिस्सो पुण पारिणामिओदइओ। एदेर्स (सिं) भेदा णव दुग अडदस तिणि इगिवीसं ॥21 ।। भावाः क्षायिक औपशमिको मिश्रः पुनः पारिणामिक औदायिकः। एतेषां भेदा नव द्वौ अष्टादश त्रय एकविंशतिः ॥
अन्वयार्थ - (खइयो) क्षायिक (उवसम) औपशामिक (मिस्सो) मिश्र अर्थात् क्षायोपशमिक (पारिणामिओदइओ) पारिणामिक और
औदयिक ये पाँच (मावा) भाव है (एदेस भेदा) इन भावों के भेद क्रमशः . (णव) नौ (दुग) दो (अड दस) अठारह (तिण्णि) तीन और (इगिवीस) इक्कीस है।
भावार्थ - क्षायिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक औदयिक और पारिणामिक ये पाँच भाव हैं। क्षायिक भाव के नो भेद, औपशमिक भाव के दो भेद, क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद औदयिक भावके इक्कीस भेद तथा पारिणामिक भाव के तीन भेद होते हैं। इन भेदों के नाम आगे की गाथाओं से जानना चाहिए।
कम्मक्खए हुखझ्मो भावो कम्मुक्समम्मि उवसमियो। उदयो जीवस्स गुणो खओक्समिओ हवे भावो ।। 22 ||
कर्मक्षये हि क्षयों भावः कर्मोपशमे उपशमकः । उदयो जीवस्य गुणः क्षयोपशमको भवेत् भावः ।।
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