Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 20
________________ पंचैव मूलभावा उसरभावा भवन्ति त्रिपंचाशत् । एते सर्वे मावा जीवस्वरूपा मन्तव्याः ।। अन्वयार्थ - (मूलमावा) मूल भाव (पंचेव) पाँच ही है (उत्तरभावा) उत्तरभाव (तेवण्णा) त्रेपन (हवैति) होते हैं। (एदे) ये (सब्वे) सभी (भावा) भाव (जीवसरूवा) जीव के स्वरूप (मुणेयव्वा) मानना चाहिए। उक्त च - मोक्षं कुर्वन्ति मिश्रीपशमिकक्षायिकाभिधाः । बन्धमौदयिको भावो निष्क्रियाः पारिणामिकाः ||11] गाथार्थ - सायोपशमिक औपशमिक और क्षायिक भाव मोक्ष को करने वाले है। औदयिक भाव बंध करता है तथा पारिणामिक भाव निष्क्रिय है अर्थात् बन्ध मोक्ष नहीं करता है। मिच्छतिगऽयदचउक्के उखसमचउगम्हि खवगचउगम्हि। वेसु जिणेसु विसुद्धे णायब्बा मूलभावा हु ।। 29 ॥ मिथ्यात्वत्रिकायतचतुष्के उपशमचतुष्के क्षपकचतुष्के। वयोर्जिनयोः विशुद्धा ज्ञातव्या मूलभावा हि || खविगुवसमगेम विणा सेरतिभाला हु ऐन पंचेन । उवसमहीणाचउरो मिस्सुवसमहीणतियभावा ।। 30 ।। क्षपकोपशकाभ्यां बिना शेषत्रिभावा हि पंच पंचैव । उपशमहीनाश्चत्वारः मित्रोपशमहीनत्रिक मावाः ।। अन्वयार्थ -(हु) निश्चयसे (मिच्छतिग) मिथ्यात्वादित्तीन गुणस्थानों में (खविगुवसमगेण) क्षायिक और उपशम भाव के (विणा) बिना (सेसतिभावा) शेष तीन भाव (अयदचउक्के) असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानों में (पंच) पाँच भाव तथा (उवसमचउगम्हि) उपशम श्रेणी के चार गुणस्थानों में (पंचेव) पाँचों भाव तथा (खवगचउगम्हि) क्षपकश्रेणी के चार गुणस्थानों में (उवसमहीणाचउरो) उपशम भाव से रहित चार भाव, (वेसु जिणेस) दो जिनों में अर्थात् सयोग केवली और अयोगकेवली में (मिस्सवसमहीण) क्षायोपशमिक और उपशम से रहित शेष (तियभावा) तीन भाव होते हैं । ये (पंचेव भूलभावा) पाँच ही (13)

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