Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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(१८)
पचार भी धंधुककी औलादमें होनेके कारण ही धाँधू कहलाते होंगे । धाँधू पवारों के राज्य पर भाटियोंने कब्जा कर लिया और उनसे उसे साँखलोंने छीन लिया ।
ओसियाँके सिचियाय माताके विशाल मन्दिरसे जाना जाता है कि उप्पलदेव पवारका राज्य बहुत बड़ा था, क्यों कि यह मन्दिर लाखों रुपयेकी लागतका है और एक किलेके समान अब तक साबित खड़ा है ।
भीनमालसे पवारोंकी और भी शाखाएँ निकली थी । उनमेंसे कालमा नामकी शाखाका राज्यसाचोरमें था और काबा शाखाका राज्य भीनमालके पास रामसेन वगैरह कई ठिकानों में था। कुछ समय बाद कालमा पवारोंसे तो चौहानोंने राज्य छीन लिया और काबा शाखावाले अब तक रामसेन वगैरह (जसवन्तपुराके ) गाँवोंमें मौजूद हैं।
इस प्रकार परमारोंके मारवाड़मके इतने बड़े राज्यमेंसे अब केवल काबा पवारों के पास थोडांसी ज़मीदारी रह गई है ।
मालवेमें भी परमारोंका विशाल राज्य था । जिसके बावत ख्यातोंमें यह सोरठा लिखा मिलता है:
" पिरथी बड़ा पवार पिरथी परमारां तणी।
__एक उजीणी धार दूजो आबू बैसणो॥” यह राज्य मुसलमान बादशाहोंकी चढ़ाइयोंसे बरबाद हो गया । मगर वहाँसे निकली हुई कुछ शाखाएँ अब तक नीचे लिखी जगहोंमें मौजूद हैं:
मालवा-धार और देवास । बुंदेलखण्ड-अजयगढ़। मध्यभारत-राजगढ़ और नरसिंहगढ़ । ये ऊमटशाखाके पवार हैं। विहारमें--भोजपुरिया, बक्सरिया वगैरह परमारोंके राज्य डुमराव आदिमें हैं। संयुक्तप्रान्तमें-टिहरी गढ़वाल ( स्वतन्त्र राज्य )। वागड़के पवारोंका राज्य गुहिलोतोंने ले लिया था। यहीं पर अब डूंगरपुर और बाँसवाड़ेकी रियासतें हैं।
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