Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 10
________________ बौद्ध धर्मशासन और पर्यावरण संरक्षण मुंज की.... कमल की पादुका नहीं धारण करनी चाहिए ।" यहां उन्होंने स्पष्ट कहा है कि, 1. "जीवसञिनो हि, भिक्खवे, मनुस्सा रुक्खस्मि ।" "मनुष्य वृक्षो में जीव का खयाल रखते हैं ।" - अतः वृक्षों का काटना भी हिंसा का ही एक प्रकार है । । गौतम बुद्ध की दृष्टि से प्राणियों की हिंसा भी वर्जित थी। अभक्ष्य मांस के संदर्भ में "मनुष्य हाथी... घोडे... कुत्ते.... सांप.... बाघ.... चीते.... भालू.... तळक.... आदिका मांस नहीं खाना चाहिए ।".... ऐसा उनका विधान था । उसी समय गौतम बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए महार्ध शय्या का निषेध किया था । तब भिक्षुओं सिंह-चर्म, व्याघ्र-चर्म, चीते का चर्म धारण भी करते थे और उन्हें चारपाई के प्रमाण से काटकर, चारपाई के भीतर बिछा रखते थे। भगवान बुद्धने यह बात जानी और उसका निषेध करके बताया कि "मैंने तो अनेक प्रकार से प्राणहिंसा की निंदा की है और प्राण-हिंसा के त्याग की प्रशंसा की है। " . न भिक्खवे, महाचम्मानि धारेतब्बनि, सिंहचम्मं, व्यग्घचम्म, दीपि-चम्मं । आगे भी कहते हैं.... "भिक्खवे... ननु भगवता अनेकपरियायेन पाणतिपातो गरहितो, पाणातिपाता वेरमणी पसत्था.... ... न भिक्खवे, गोचम्मं धारेतब्बं ।" । -- . गौतम बुद्धने मनुष्य-हत्या की भी गहाँ की है । और मनुष्य हत्या करनेवाले को पाराजिक का दोष लगाया है । । यो पन भिक्खु सञि मनुस्सविग्गहं जीविता वोरोपेय्य, सत्थहारकं वास्स परियेसेय्य, मरणवण्णं वा संवण्णेय्य, मरणाय वा समादपेय्य... अयं पि पाराजिको होति असंवासो । ... "जो भिक्षु जानकर मनुष्य को प्राण से मारे, या (आत्महत्या के लिए) शस्त्र को खोज लाये, अथवा मृत्यु की प्रशंसा करके मरने के लिए प्रेरित करे... तो यह भिक्षु पाराजिक होता है... (संघमें) सहवास के लिए अयोग्य होता है।" - इस तरह भिक्षुओं के नियमों के संदर्भ में अहिंसा का और तृण, वृक्ष, पानी, छोटे जीवजंतुओं आदि की सुरक्षा के बारे में गौतम बुद्ध ने प्रेरक उपदेश दिया है। - अत्यंत अनुकंपाशील और करुणापूर्ण इस महामानव ने अहिंसा के माहात्म्य के बारे में बार बार उपदेश दिया है । "अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये" कह कर प्राण-हिंसा से विरत होने का बोध दिया है ।

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