Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 29
________________ २२ . बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम . यह बारह निदान इस तरह है : अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नामरूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव, जाति, जरा-मरण-शोक, दुःख और दौर्मनस्य । इसमें अविद्या से संस्कार, संस्कार से विज्ञान, विज्ञान से नामरूप.... इस प्रकार से समस्त दुःखस्कन्ध का समुदय होता है, यही प्रतीत्य समुत्पाद है। अस्मिन् सति इदम् होति - अर्थात् इसके होने पर यह होता है । प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ .... प्रायः सापेक्ष कारणतावाद है। प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ : व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ इस तरह होता है - 'इण' धातु गत्यर्थक है, किन्तु उपसर्ग लगाने से धातु का अर्थ बदल जाता है । इस लिए प्रति इ का अर्थ प्राप्ति है और प्रतीत्य का अर्थ है 'प्राप्ति करके । पद धातु सत्तार्थक है । सम्+उत् उपसर्गपूर्वक इसका अर्थ प्रादुर्भाव है। अतः प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ है प्रत्यय (हेतु) प्राप्त कर प्रादुर्भाव - कारण होने से कार्य का उद्भव; उपसर्गपूर्वक इसका अर्थ प्रादुर्भाव है । अतः प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ है प्रत्यय (हेतु). प्राप्त कर प्रादुर्भाव, कारण होने से कार्य का उद्भव । 'अस्मि सति इदं होति' अर्थात् इसके होने पर यह होता है - ऐसा सूत्रात्मक अर्थ दिया जाता है। प्रतीत्य समुत्पाद अनुलोम - प्रतिलोम दो प्रकार का है। यह हेतुप्रत्ययता का वाद है । अतः जिस तरह एक प्रत्यय से दूसरे प्रत्यय का प्रादुर्भाव होता है, इस तरह एक प्रत्यय के निरोध से अन्य प्रत्ययों का भी क्रमशः निरोध होता है। अविद्या के निरोध से संस्कार का निरोध होता है... और क्रमशः जाति, जन्म का निरोध होने से जरा, मरण, शोक.... आदि का निरोध होता है। इस तरह समस्त दुःख स्कन्ध का नाश होता है। प्रतीत्य समुत्पाद में इस तरह अनुलोम और प्रतिलोम के माध्यम से दुःख समुदय और दुःख निरोध का प्रतिपादन हुआ है । इस लिये इस सिद्धान्त का महत्त्व समझाते हुए गौतम बुद्धने कहा है कि जो प्रतीत्य समुत्पाद को जानता है वह धर्म को जानता है और जो धर्म को जानता है वह प्रतीत्य समुत्पाद को जानता है। प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादश अंगो का परिचय इस प्रकार है : १. अविद्या : अविद्या का अर्थ है अज्ञान । प्राय: चार आर्य संत्यों का अज्ञान ही अविद्या है। अनित्य, दुःखरूप और अनात्म जगत में आत्मा को खोजना अविद्या है । वसुबन्धु पूर्वजन्म की क्लेषावस्था को अविद्या कहते हैं।

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