Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ जैन आचारसंहिता और पर्यावरणशुद्धि निषेध है। ___ रात्रिभोजन सामान्य तरह से अनुचित तो है ही तब भी रात्रि के समय सूर्यप्रकाश नहि होने के कारण वातावरण में जीवजंतुकी उत्पत्ति-उपद्रव बढ़ जाते है। (सूर्यप्रकाश में ऐसी शक्ति है तो वातावरण का प्रदूषण और क्षुद्र जीवजंतुओं का नाश करती है।) इन जंतुओं की हिंसा के भयसे रात्रिभोजन वर्ण्य माना गया साधुओं के लिये वर्षाकी ऋतुमें एक ही जगह निवास करने का आदेश है, ताकि मार्ग में चलनेसे छोटे जीव-जंतु कुचल न जाय । __ जैनदर्शनमें यह अहिंसा और सर्व जीवों प्रति आत्मभाव का विशेषरूपसे उपदेश दिया गया । वनस्पति, भी सजीव होने के नाते जीव-जन्तुओं के साथ, उसके प्रति भी अहिंसक आचार-विचार का प्रतिपादन किया गया । एक छोटे से पुष्प को शाखासे चूंटने के लिये निषेध था - फिर जंगलों काटने की तो बात ही कहाँ ? जल में भी बहत छोटे छोटे जीव होते हैं - अतः जलका उपयोग भी सावधानीसे और अनिवार्य होने पर ही करने का आदेश दिया गया । रात्रि के समय दीप जला कर कार्य करनेका भी वहा निषेध है । दीपक की आसपास अनेक छोटे छोटे जंतु .: उड़ने लगते हैं और उनका नाश होबा है, अतः जीवहिंसा की दृष्टिसे दीपक के प्रकाशमें कार्य करना निंदनीय माना गया । . जैनदर्शन की आचारसंहिता के निषेधों के कारण स्वाभाविक ढंग से ही वनस्पति, जल, अग्नि आदि तत्त्वों का उपयोग मर्यादित हो गया। . . . . इन आचारगत नियमों के कारण वनस्पति और जीव-जंतु तथा अन्य प्राणियों की रक्षा होती है। ''. जैन दर्शन में हिंसा के चार रूप माने गये हैं - १.. संकल्पना (संकल्पी हिंसा) - संकल्प या विचारपूर्वक हिंसा करना । यह आक्रमणात्मक हिंसा है। २. , विरोधजा - स्वयं और दूसरे लोगों के जीवन एवं सत्वों (अधिकारों) के रक्षण के लिए विवशतावश हिंसा करना । यह सुरक्षात्मक हिंसा ३. उद्योगजा - आजीविका उपार्जन अर्थात् उद्योग एवं व्यवसाय के निमित्त होनेवाली हिंसा । यह उपार्जनात्मक हिंसा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130