Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 114
________________ श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन १०७ प्रस्तुत के वर्णन में कविने जिन अप्रस्तुतों का सहारा लिया है, उनमें प्राकृतिक उपादानों की मात्रा बहुत अधिक है । मुख, अलक, नयन, नासिक, दंत, अधर, स्तन आदि का वर्णन करते समय कवि परंपरा अनुसार चन्द्रमा, कमल, सूर्य, भ्रमर, नाग, मृग, मीन, बिम्बफल, पल्लव, वेल आदि से उपमित करते हैं । कविने व्यक्ति या अंग - विशेष, घटनाविशेष या प्रसंग विशेष को प्रभावसमन्वित बनाने के लिये प्रकृति के उपमानों से सहायता ली है । कहीं कहीं कविने इस से वर्ण्य विषय को चित्रात्मक या ताद्दश बनाने में सफलता भी मिली है । प्रकृति-वर्णन में प्राकृतिक पदार्थों के नामों की लम्बी सूचि देने से कवि की बहुज्ञता प्रकट होती है, लेकिन यह कविकर्म की सफलता नहीं है । कभी कभी प्रकृति वर्णन उद्दीपन के रूप में और कभी घटनाओं की पृष्ठभूमि के रूप में भी किया है। वसंत और वर्षाऋतु में प्रकृति उद्दीपनविभाव किस तरह बनती है इसका वर्णन प्रायः मिलता है । कभी कभी प्रकृति में मानवीय भावों का आरोपण भी किया गया है, वहाँ प्रकृति सजीव सी हो उठती है । ऋतु परिवर्तन के संधिकाल को भी कविने चातुरी से आलेखित कीया है । शिशिर की विदाय और वसंत का आगमन के समय का वर्णन बड़ा ही मार्मिक और चातुरीपूर्ण है । (पृ. १७६, श्लोक २७, पृ. १७७, श्लोक ३० ) 1 वसंत, ग्रीष्म आदि ऋतुओं का भी विस्तृत वर्णन यहाँ उपलब्ध है । यहाँ कवि उपमा, रूपक या उत्प्रेक्षा की सहाय से वर्ण्य विषय को प्रभावक बनाने की कोशिश करते हैं । पाँचवे सर्ग में सब ऋतुओं का आलंकारिक वर्णन है । कामदेव लोकविजय के उत्स्वरूप वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं - भुवनैकजयोत्सवाय कंतोरिव भृंगीजनमंगलस्वनौधैः । मधुना विधिनार्पिताकुर श्रीरजनिष्ट द्रुमयष्टिपालिकासु ॥ (सर्ग - ५, ४५) ॥ वसंत ऋतु के प्रभाव से जो वृक्षरूपी यष्टिपालिकाओं (ध्वजा दंडको थामने वाली औरतों) पर नाना अंकुर रूपी लक्ष्मी दीखने लगी और भ्रमरीरूपी स्त्रियों के समूह अपने शब्दों से मंगल रूपी गीत गाने लगे तो उनसे महाराज कामदेव के • लोकविजय का उत्सव सरीखा मूलम होने लगा । ऋतुओं के अतिरिक्त कविने प्रकृति के अन्य स्वरूप जैसे सरोवर, नदी, पहाड, वन, सागर, सूर्योदय, चंद्रोदय, संध्या, रात्रि आदि का भी वर्णन किया है।

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