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श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन जो अपने हित को चाहने वाले हैं - सुख से रहना चाहते हैं उन्हें अपने बड़े लोगों के वचन कभी न टालने चाहिये उनका कभी भी उल्लंघन करना उचित नहीं ।
जहि कोपमपायकारणं जहि प्रौढांगदमं मदोद्धतिम् । . गजराज ! जहीहि मस्तरं त्वममैत्री च जहाहि देहिभिः ॥११॥
इसके सिवाय तुम्हें यह भी उचित है कि जीव का सर्वथा नाश-अहित करने वाले कोप को छोडो, प्रोढ अंगों की दमन करने वाली मदोन्मत्तता को तिलांजलि देदो, दूसरों से ईर्ष्या करना छोड दो और समस्त प्राणियों के साथ शत्रुता करने से भी बाज आ जाओ, सबके साथ मित्रता का व्यवहार करना प्रारंभ कर दो ।
यदि प्रियासाद्यदि नाशि यद्यलं गुणच्छिदे यापतापसंघये । अनात्मनीनं तत एव तर्हि तद् वृथैव धिग्धिगे विषयोन्मुखं सुखम् ॥७६॥
विषयजन्य सुख नष्ट हो जानेवाला है गुणों का नाश कर देता है, पश्चाताप कराता है और अत एव आत्माका वैरी है इसलिये उसे वार वार धिक्कार है । . अविविच्य क्रिया नैव श्रेयसे बलिनामपि ।
गजोऽपि निपतेत् गर्ते वृत्तस्तमसि चर्यया ॥८४॥ बिना सोचे समझे काम करने से बलशाली पुरुषों का भी कल्याण नहीं होता, देखिये ! अंधकार में चलने से हाथी गड्ढे में गिर पडता है।
__अशक्यवस्तुविषयः प्रत्यवायकृदुद्यमः ।
• अंघ्रिणा क्रमतोऽप्यग्निमंघ्रिस्फोटः स्फुटायते ॥८५|| ___ अशक्य पदार्थ के विषय में किया गया परिश्रम अवश्य मतिहन हो जाता है जैसे कि अग्नि को पैर से कुटनेवाले पुरुष का पैर ही जलता है, अग्नि का कुछ नही बिगड़ता ।
. स्वैरमन्यदतिक्रम्य प्रवर्तेताखिलं बली । ... कालक्रमोपपन्ना तु नियतिः केन लंध्यते ॥८६॥ .
बलवान् पुरुष दूसरे पदार्थो पर इच्छानुसार विजय पा सकता है लेकिन कालक्रम से प्राप्त हुए भाग्य को कौन टाल सकता है। .. कवि की भाषा-शैली, अभिव्यक्ति-कौशल्य, अलंकारयोजना आदि नोंधपात्र है। इस से भी कवि-कौशल्य का परिचय मिलता है । भाषा में सहज प्रवाह और भावानुरूप परिवर्तित होने की क्षमता है। ओज, प्रसाद और माधुर्य तीनों गुणों का