Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 109
________________ १०२. बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम महाकाव्ये.... नाम... सर्ग ...." इस तरह उल्लेख करके श्री पार्श्वनाथ चरित्र को महाकाव्य कहा है । भामह, दंडी, विश्वनाथ, रुद्रट, हेमचंद्राचार्य आदि विद्वानोंने अलग अलग तरीके से महाकाव्य की विभावना और स्वरुप प्रस्तुत कीया है । अनेक कवियों के प्रयोगों और अनेक आचार्यों के मत-मतान्तरों तथा सिद्धान्त निरूपण के फलस्वरूप संस्कृत महाकाव्य का रूप उत्तरोत्तर विकसित होता गया और वह नये प्रभावों को ग्रहण करता गया । इस समय 'संस्कृत महाकाव्य' कहने से उसके वर्ण्य विषय और प्रबन्धात्मक रूप-विधान का जौ चित्र सामने आता है उसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया जा सकता है । महाकाव्य सर्गबद्ध होना चाहिए और उसका कथानक बहुत लम्बा और न बहुत छोटा होना चाहिए । कथानक नाटक की संधियों की योजना के अनुसार इस प्रकार संयमित हो कि वह समन्वित प्रभाव उत्पन्न कर सके । उसमें एक प्रधान घटना आद्योपान्त प्रवाहित होती रहे जिसके चारों ओर से अन्य उपप्रधान पर्यवसित होती रहें । कथानक उत्पाद्य-अनुत्पाद्य और मिश्र तीनों प्रकार का हो सकता है । महाकाव्य का नायक धीरोदत्त सद्वंशोत्पन्न हो । वह क्षत्रिय या देवता हो तो अधिक अच्छा होगा । नायक का प्रतिनायक भी बल- गुण सम्पन्न होना चाहिए: तभी तो उसे पराजय देने में नायक की महत्ता है । अन्य अनेक पात्रों का होना भी जरूरी है । नायिकाओं की चर्चा शास्त्रकारों ने महाकाव्य के लक्षण गिनाने में नहीं की है पर कोई महाकाव्य ऐसा नहीं है जिसमें नायिका की महत्त्वपूर्ण भूमिका न हो । महाकाव्य में कथानक के इर्द-गिर्द अनेकानेक वस्तु - व्यापारों का वर्णन नितान्त आवश्यक है । लक्षणाकारों ने इनकी पूरी सूचि गिना दी है। संस्कृत के अलंकृत महाकाव्य का प्रधान लक्षण है कि उसमें घटना- प्रवाह चाहे क्षीण हो पर अलंकृत वर्णनों की प्रधानता होगी । नाटक के समान संस्कृत के महाकाव्यों में भी भाव-व्यंजना प्रधान तत्त्व है । भावों को परिपक्व बनाकर रस की योजना अवश्य करनी होती है। रस की उत्पत्ति पात्रों और परिस्थितियों के सम्पर्क, संघर्ष और क्रिया-प्रतिक्रिया से दिखाई जाती है। श्रृंगार, वीर और शांत रसों में से कोई एक रस प्रधान होता है । अन्य सभी रस स्थान-स्थान पर गौण रूप में प्रकट होते रहते हैं । मानवीय घटनाओं और व्यापारों के अतिरिक्त महाकाव्य में अमानवीय और

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