Book Title: Bauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Author(s): Niranjana Vora
Publisher: Niranjana Vora

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Page 97
________________ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम सज्जनों से प्रीति और दुर्जनों से भीति की बात करते हुओ कविने दुर्जन के संदर्भ में श्वान, कौवा, और गर्दभ के स्वभावविशेषका वर्णन दिया है और इन की तुलना में दुर्जनों की निम्नतर कोटिका निदर्शन दिया है । दुर्जनों की मनोवृत्ति के साथ यहां श्वान, कौवा और गर्दभ की वर्णित लाक्षणिकताओं उनकी सहज प्रकृति का वास्तविक ढंग से परिचय देती है। राजकुमार कुवलयचन्द्र कुवलयमालाको प्राप्त करने के लिये विजयापुरी नगर के प्रति प्रयाण करता है । वहाँ नगर की समीपं में पहुंचने के बाद, स्त्रियों का एक वृंद - जो कुलवयमाला के सौंदर्य के बारे में बातें कर रहा था - वह सुनता हैं । इन स्त्रियों ने अपने मनोभावों को यहां जिस तरह अभिव्यक्त किये हैं - इस से स्त्रीस्वभाव का यथातथ परिचय मिलता है । मठ के छात्रों के संवादों में भी इसी तरह उनकी मनोवृत्ति प्रगट होती है । कुवलयमाला और कुवलयचन्द्र की कामप्रेरक मनोवस्था का अति सूक्ष्म रूप से आलेखन हुआ है। लगता है कथाकार मानवमन के नानविध रहस्यों के अभ्यासी और बड़े जानकार थे। महेश्वरसूरि रचित णाणपंचमीकहामें सूत्ररूप गाथाएँ हैं - जिनमें मानवजीवन के रहस्यों का उद्घाटन हुआ है । जयसेणकहा में स्त्रियों के प्रति सहानुभूतिसूचक सुभाषित कहे गये हैं : वरि हलिओ वि हु भत्ता अनन्नभज्जो गुणेहि रहिओ वि । मा सगुणो बहुभज्जो जइराया चक्कवट्टी वि ॥ - - अनेक पत्नीवाले सर्वगुणसंपन्न चक्रवर्ती राजाकी अपेक्षा गुणविहीन एक पत्नीवाला किसान कही श्रेष्ठ हैं। दरिद्रता की विडंबना देखिये - गोट्ठी वि सुटु मिट्टी दालिद्दविडंबियाण लोएहि । वज्जिज्जइ दुरेणं सुसलिलचंडालकूवं व ॥ (गुणानुरागकहा) - जिसकी बात बहु मधुर हो लेकिन जो दरिद्रता की विडंबना से ग्रस्त है, ऐसे पुरुष का लोग दूर से ही त्याग करते हैं; जैसे मिष्ट जलवाला चांडाल का कूआं भी दूर से ही वर्जनीय होता है। यहाँ व्यक्तियों की मनोवृत्तियों का समष्टि के संदर्भ में औचित्यपूर्ण आलेखन हुआ है। - देवेन्द्रगणिसूरि रचित आख्यानमणिकोष के प्रभाकर-आख्यान में जनसामान्य की वेदना-संवेदनाओं को सामाजिक संदर्भ में चित्रित करते हुए घन-उपार्जन का

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